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अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया

अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया। प्यासे नयन तकें बरसों से , आकर प्यास बुझाओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।। हरि-हर-ब्रह्मा, सूर-मुनि सेवें, सेवा भाव जगाओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।। कनक कलेवर, लाल चुनरिया, माँग सिंदूर लगाओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।। टीका कुण्डल मोती सोहे, चंद्रवदन दिखलाओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।। पुष्प- हार असि खप्पर धारी, सिंह चढ़ी चलि आओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।। रक्तबीज महिषासुर घाती, महिमा फिर दिखलाओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।। काम क्रोध मद लोभ शोक संग, मत्सर मोह मिटाओ मेरी मैया।। अब तो दरस दिखाओ मेरी मैया।।                          - राजेश मिश्र 
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आओगे जब तुम रामलला

आओगे जब तुम रामलला, हम पलकन डगर बुहारेंगे। नयनन से नीर बहायेंगे, अँसुवन जल चरण पखारेंगे।। हम रुचि-रुचि भोग लगायेंगे, अपने हाथों से खिलायेंगे, जब थककर तुम सो जाओगे, हम बैठे चरण दबायेंगे। तुम सोओगे, हम जागेंगे, अपलक प्रभु तुम्हें निहारेंगे। आओगे जब तुम रामलला, हम पलकन डगर बुहारेंगे।। तेरा पूजन, तेरा वन्दन, पल-पल प्रभु तेरा ही चिन्तन, तन में भी तुम, मन में भी तुम, तेरा ही जग में अभिनन्दन। चलते फिरते सोते-जगते, प्राणों में तुम्हीं को धारेंगे। आओगे जब तुम रामलला, हम पलकन डगर बुहारेंगे।। बस यही अनुग्रह कर देना, निज चरणों में आश्रय देना। जब भूल कभी हो जाये तो, मत चरण-शरण से तज देना। तुम अवसर देना प्रभु हमको, हम आपनी भूल सुधारेंगे। आओगे जब तुम रामलला, हम पलकन डगर बुहारेंगे।। - राजेश मिश्र

ठुमुकि चलत रघुराई

ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई। आनंद मन न समाई, हरष हियँ तीनहुँ माई।। गिरत उठत पुनि-पुनि प्रभु धावत भागत दूर निकट फिरि आवत किलकत हँसत ठठाई, हरष हियँ तीनहुँ माई। ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।। रुकत झुकत घुटनन से झाँकत करत ठिठोली मातहि ताकत अद्भुत करें लरिकाई, हरष हियँ तीनहुँ माई। ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।। नृप दसरथ सब भाँति निछावर निरखि-निरखि पुलकित प्रिय रघुबर गुड़ गूँगा ज्यों खाई, हरष हियँ तीनहुँ माई। ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।। - राजेश मिश्र

राम भजो मन

राम ही सत् हैं, राम ही चित् हैं राम ही घन आनन्द हैं। राम भजो मन, राम भजो मन राम ही परमानन्द हैं।। राम सगुण हैं, राम ही निर्गुण, निराकार साकार हैं। राम ही ब्रह्मा, राम ही विष्णु, राम ही शिव अवतार हैं। राम ही सोम, सूर्य अरु अग्नि  वायु, वरुण अरु इन्द्र हैं। राम भजो मन, राम भजो मन राम ही परमानन्द हैं।। राम ही धरती, राम गगन हैं, राम ही चौदह लोक हैं। राम ही चेतन कण-कण में हैं, राम ही हर आलोक हैं। राम ही स्वर हैं, राम ही लय हैं, राम ही ताल और छन्द हैं। राम भजो मन, राम भजो मन राम ही परमानन्द हैं।। राम ही प्राण हैं, त्रिविध शरीर हैं, पञचकोश भी राम हैं। राम ही चित्त हैं, राम ही मन हैं, बुद्धि-अहं भी राम हैं। राम ही भोग हैं, राम ही योग हैं, राम जीव हैं, ब्रह्म हैं। राम भजो मन, राम भजो मन राम ही परमानन्द हैं।। - राजेश मिश्र

राम घर आये हैं

प्रेम-रस सराबोर सब अङ्ग, नयन जल छाये हैं। राम घर आये हैं।। अवध में अद्भुत है आनन्द, बज रहे ढोलक झाल मृदङ्ग, चहूँ दिशि बिखरे नाना रङ्ग, नारि-नर नाचें भरे उमङ्ग, देखि लक्ष्मण सीता प्रभु सङ्ग, हृदय हर्षाये हैं। राम घर आये हैं।। सुशोभित सुरभित बंदनवार, डगर पर फूलों की भरमार, चौक पूरे हैं हर घर-द्वार, गगन में गूँजे मङ्गलचार, देखने अनुपम दृश्य अपार, देव-मुनि धाये हैं। राम घर आये हैं।। प्रजा जन छोड़ सकल संसार, जुटे हैं भव्य राम-दरबार, भरे आँखो में स्नेह अपार, परम प्रभु रूप अनूप निहार, विकल हो‌ सारे हृदयोद्गार, दृगों से ढाये हैं। राम घर आये हैं। - राजेश मिश्र

कहाँ हैं रामलला?

कर सोलह श्रृंगार, अयोध्या अपलक डगर निहार कहां हैं रामलला? आनंद अपरंपार, बहे नयनों से अविरल धार कहां हैं रामलला? सदियों लड़कर शुभ दिन आया हर्षोल्लास लोक तिहुँ छाया घड़ी मिलन की अब आई है सिहरन सी तन में छाई है वाणी है लाचार, धड़कती छाती बारंबार, कहां हैं रामलला? कर सोलह श्रृंगार, अयोध्या अपलक डगर निहार कहां हैं रामलला? झलक दिखी रघुवर सुजान की  कृपायतन करुणानिधान की श्याम गात पर पीताम्बर की नरकेशरि की, कर धनु-शर की अमित अनंत अपार, छटा लखि लज्जित सकुचित मार कहां हैं रामलला? कर सोलह श्रृंगार, अयोध्या अपलक डगर निहार कहां हैं रामलला? राम अयोध्या सम्मुख आये पुलक गात कुछ कहि नहिं जाये देखि अलौकिक छवि अति न्यारी तुरत अयोध्या भई सुखारी भेंटी भर अँकवार, रहा सुख का नहिं पारावार विराजो रामलला। कृपासिन्धु सरकार, करो सबके दुख का निस्तार हमारे रामलला।। ,- राजेश मिश्र

दरस दिये रघुराई

दरस दिये रघुराई, हृदय गति कहि नहिं जाई। मनहिं मनहिं मुसुकाई, हृदय गति कहि नहिं जाई।। रूप सलोना सोहत ऐसे कोटिक काम खडे हों जैसे भाल तिलक सिर मुकुट बिराजे कण्ठ माल पीताम्बर साजे निरखि कलुष मिटि जाई, हृदय गति कहि नहिं जाई। दरस दिये रघुराई, हृदय गति कहि नहिं जाई।। बड़भागी प्रभु दरसन पाया जनम-जनम का पाप गँवाया नेह कमल चरणन रज लागा चंचरीक ज्यों पदुम परागा सब सुधि-बुथि बिसराई, हृदय गति कहि नहिं जाई। दरस दिये रघुराई, हृदय गति कहि नहिं जाई।। - राजेश मिश्र