चलते-चलते ज़िंदगी की शाम हो जायेगी।
उम्र सारी यूँ ही तमाम हो जायेगी॥
बात करता है इस जमाने में मूल्यों की,
आबरू इसकी एक दिन नीलाम हो जायेगी॥
भूख कि आदमी आदमी को खायेगा,
इंसानों का जंगल, इंसानियत गुमनाम हो जायेगी॥
टूटे हुए दिल, स्तब्ध-बिखरे लोग,
डाकुओं की मंजिल आसान हो जायेगी॥
देखकर सबको प्रेम से मुस्कुरा देते हो जो,
हँसी तुम्हारी एक दिन इलज़ाम हो जायेगी॥
उम्र सारी यूँ ही तमाम हो जायेगी॥
बात करता है इस जमाने में मूल्यों की,
आबरू इसकी एक दिन नीलाम हो जायेगी॥
भूख कि आदमी आदमी को खायेगा,
इंसानों का जंगल, इंसानियत गुमनाम हो जायेगी॥
टूटे हुए दिल, स्तब्ध-बिखरे लोग,
डाकुओं की मंजिल आसान हो जायेगी॥
देखकर सबको प्रेम से मुस्कुरा देते हो जो,
हँसी तुम्हारी एक दिन इलज़ाम हो जायेगी॥
क्या बात कही बस सीधे दिल पर आ लगी, देखकर सबको प्रेम से मुस्कुरा देते हो जो, हँसी तुम्हारी एक दिन इलज़ाम हो जायेगी॥ शब्द नही मिल रहे आप को साधुवाद देने के , बस जय हो!!!
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ..मानवीय कमजोरियों को दर्शाती सशक्त रचना
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