धरती पर भगवान् विष्नु का रूप
हमारा पालक-पोषक, अन्न्दाता है किसान
इन्सान की प्रथम आवश्यकता का पूरक
जीवनदाता है किसान
मुँह-अँधेरे खेतों में पहुँच
अपने पवित्र श्रम-बिन्दु से
सूरज की पहली किरणों का
अभिषेक करता है किसान
और साँझ को
दिन भर की थकी-माँदी
सूरज की अन्तिम किरणों को
अँधेरे की गोद में सुलाकर
घर के लिये प्रस्थान करता है किसान
धरती का सीना चीरकर
फसलों को लहलहाता है
अन्न उपजाता है किसान
भूख और गरीबी से लड़ता है पर
चींटी से लेकर भगवान् तक
सबका पेट पालता है किसान
हरित-क्रान्ति के नारे को सफल बनाने वाला
भारत का भाग्यविधाता है किसान
फिर भी अपने ही देश में
देश का सबसे बड़ा अभागा है किसान!
हमारा पालक-पोषक, अन्न्दाता है किसान
इन्सान की प्रथम आवश्यकता का पूरक
जीवनदाता है किसान
मुँह-अँधेरे खेतों में पहुँच
अपने पवित्र श्रम-बिन्दु से
सूरज की पहली किरणों का
अभिषेक करता है किसान
और साँझ को
दिन भर की थकी-माँदी
सूरज की अन्तिम किरणों को
अँधेरे की गोद में सुलाकर
घर के लिये प्रस्थान करता है किसान
धरती का सीना चीरकर
फसलों को लहलहाता है
अन्न उपजाता है किसान
भूख और गरीबी से लड़ता है पर
चींटी से लेकर भगवान् तक
सबका पेट पालता है किसान
हरित-क्रान्ति के नारे को सफल बनाने वाला
भारत का भाग्यविधाता है किसान
फिर भी अपने ही देश में
देश का सबसे बड़ा अभागा है किसान!
किसान ही बागवान है सुंदर रचना
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