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दिसंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नवल वर्ष का अभिनन्दन हो!

नवल वर्ष का अभिनन्दन हो! नवल चेतना, नवल सृजन हो, मंजुल मंगल परिवर्तन हो, नवल वर्ष की मधुर छाँव में पुलकित प्रमुदित जन-जीवन हो! नवल वर्ष का अभिनन्दन हो! नवल राह हो, नवल चाह हो, नवल सोच हो, नव उछाह हो, नवल भावना, नवल कामना नवल कर्म, नव जागृत मन हो! नवल वर्ष का अभिनन्दन हो! नव गिरि-कानन, गगन नवल हो, नवल पवन हो, चमन नवल हो, मानवता की नवल पौध हो, और नवल जीवन-दर्शन हो! नवल वर्ष का अभिनन्दन हो!

हिंद को बदलने की कसम हमने खाई है

भूख है, गरीबी है, दर्द है, रुसवाई है। वोट से हिंद की जनता की ये कमाई है। देश का पैसा गया स्विस बैंकी खातों में, संसदी नदी में घोटालों की बाढ़ आई है। खाकी हो, खादी हो, बेदाग कोई नहीं, अख़बार और टीवी से तौबा है, दुहाई है। दूध-घी नदारद हैं बच्चों की थाली से, पिज्जा और बर्गर की पूछ है, पहुनाई है। हम तो चुप ना रहेंगे, बोलेंगे, मुँह खोलेंगे, हिंद को बदलने की कसम हमने खाई है।

अब मौका नहीं देंगे

सोचा है शिकायत को अब मौका नहीं देंगे, दुनिया की इनायत को अब मौका नहीं देंगे॥ लायेंगे फूल उपवन से छाँट-छाँटकर, हम भीड़ की रवायत को अब मौका नहीं देंगे॥ पालेंगे ख्वाब पलकों में पुतलियों की तरह टूट जाए नजाकत को अब मौका नहीं देंगे॥ रखेंगे उसको दिल से कलेजे से लगाकर, भाई की अदावत को अब मौका नहीं देंगे॥ लाये हैं वो दवा कि जो जान ले लेगी, परजीवियों की चाहत को अब मौका नहीं देंगे॥ हम हिंद के सपूत मिट जायेंगे शान से, दुश्मनों की कवायद को अब मौका नहीं देंगे॥

सरोज

मैं पुनि समुझि देखि मन माहीं। पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं॥ प्राननाथ करुनायतन सुन्दर सुखद सुजान। तुम्ह बिनु रघुकुल कुमुद बिधु सुरपुर नरक समान॥६४॥ श्रीरामचरितमानस का पाठ कर रही सरोज के कानों में अचानक सास की उतावली आवाज सुनाई दी - "अरे बहुरिया, अब जल्दी से ये पूजा-पाठ बंद कर और रसोई की तैयारी कर. दो-तीन घड़ी में ही बिटवा घर पहुँच जाएगा. अब ट्रेन के खाने से पेट तो भरता नहीं है, इसलिए घर पहुँचने के बाद उसे खाने का इंतजार न करना पड़े." सरोज ने पाठ वहीं बंद कर दिया और भगवान को प्रणाम कर उठ गयी. शिवम को दूध देकर रसोई की तैयारी में लग गयी. आज भानू चार सालों के पश्चात् मुंबई से वापस आ रहा था. भानू और सरोज की शादी लगभग छः वर्ष पूर्व हुई थी. दोनों साथ-साथ कॉलेज में पढ़ते थे और अपनी कक्षा के सर्वाधिक मेधावी विद्यार्थियों में से एक थे. पढ़ाई के दौरान ही एक दूसरे के संपर्क में आये और प्यार परवान चढ़ा. घरवालों ने विरोध किया तो भागकर शादी कर ली. इसी मारामारी में पढ़ाई से हाथ धो बैठे और ज़िन्दगी में कुछ बनने, कुछ करने का सपना सपना ही रह गया. इस घटना के समय दोनों स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष में