विश्व की तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों का प्रादुर्भाव एवं विकास किसी न किसी नदी के तट पर हुआ है. नदियाँ हमेशा से ही किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ रही हैं. अतः मानव-समाज सदा ही इनका ऋणी रहा है एवं जन्मदायिनी माता की भाँति इनका सम्मान करता आया है. भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के पल्लवित एवं पुष्पित होने में जिन नदियों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है, गंगा का स्थान उनमें सर्वोपरि है. गंगा एक पौराणिक नदी है एवं प्राचीन काल से ही हमारी आर्थिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केंद्र-बिंदु रही है. यह गंगोत्री से उद्भूत होकर देश के एक बड़े भू-भाग को अपने अमृतमय मीठे जल से सिंचित करते हुए गंगासागर में जाकर समुद्र के आगोश में समाहित हो जाती है. गंगा का तटीय क्षेत्र भारतभूमि के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है. काशी, प्रयाग, हरिद्वार, कानपुर, कन्नौज, पाटलिपुत्र आदि पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगरों का उद्भव एवं विकास इसी के पवित्र एवं समृद्ध तट पर हुआ है. किन्तु मानव-सभ्यता के विकास में अत्यंत नजदीकी भूमिका निभाने वाली इन नदियों को इसका भयंकर दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ा है. अ...