शोभे शुभ्र हिमाद्रि, शिरोभूषण शिख सुन्दर । पाँव पखारत उदधि, मगन मन मुदित मनोहर ।। सिञ्चति सुरसरि सूर्य-सुता पावन शीतल जल । शस्य श्याम परिधान, परम परिकीर्ण परिचपल ।। सुरभित सरस समीर, श्वाँस त्रय ताप नसावन । चारु चंद्रिका चपल, मधुर स्मित सरल सुहावन ।। गुञ्जत गायन गाथ, दसों-दिश जल-थल-नभ में । वेद-ऋचा धुनि नाद, गहन गिरि-कानन जन में ।। ज्ञान-ध्यान-तप-योग, दिया तूने संसृति को । चरमोत्कर्ष प्रदान, किया अनुपम विधि-कृति को ।। अञ्चल अमिय असीम, दिव्य औषधि की जननी । सुयश अमित माँ कहत, थकित गणनायक अँकनी ।। सुर-नर-मुनि नित पूज्य, परम पावन ऐश्वर्या । धन्य-धन्य वह देह, मिटे माँ की परिचर्या ।।