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प्रिय! तुमने अन्याय किया है।

प्रिय! तुमने अन्याय किया है। वाणी से जो-जो करना था, आँखों से अंजाम दिया है। प्रिय! तुमने अन्याय किया है।। भाव हृदय के जब भी शब्दों में ढल आए  क्रूर मौन से लड़कर बोल नहीं बन पाए  विवश वाक् की हर पीड़ा को मर्यादा का नाम दिया है।  प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।१।। अधरो की कलियों ने जब-जब खुलना चाहा विकसित हो श्रवणों में मृदु-मधु भरना चाहा प्रेम-पयस् पावन-प्रवाह को निर्दयता से थाम लिया है।  प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।२।। चंचल निर्मल कोमल दृग किसको बतलाएँ सबके कर्तव्यों का थककर बोझ उठाएँ तुमने इन नाजुक अंगों को हद से बढ़कर काम दिया है। प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।३।। - राजेश मिश्र
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धर्म-ध्वजा फहराई है

सदियाँ बीतीं, शुभ दिन आया, अवधपुरी हर्षाई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। हर्षित हैं सब देव-देवियाँ हर्षित हैं धरतीवासी  मन प्रसन्न आशान्वित नाचें संभल, मथुरा अरु काशी शीघ्र हमें भी मुक्ति मिलेगी, आँख सजल हो आई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। हर शरणागत, दुखी-दीन को हमने हृदय लगाया है  किंतु कृतघ्नों ने पीछे से  हम पर छुरा चलाया है  छद्मयुद्ध में धर्म निभाकर हमने जान गँवाई है।  सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। करुणा और प्रेम से हमने  उनके आँसू पोंछे हैं प्रत्युत्तर में अश्रु दिया है  वे घाती हैं, ओछे हैं कायरता माना सबने जब हमने दया दिखाई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। रक्तबीज हैं शेष अभी भी धर्मयुद्ध नित जारी है उन्हें समूल नष्ट करने की  अपनी भी तैयारी है साँपों और सँपोलों का वध करने की रुत आई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। हर हिंदू अब जाग रहा है  म्लेच्छ मिलेंगे गारत में  लहर लहर लहराएगा अब हर घर भगवा भारत में खोया यश पाने के क्रम में यह पहली अँगड़ाई है  स...

रहोगी तुम ही मन में

तुम्हीं थी मन में मेरे, तुम्हीं हो मन में मेरे,  रहोगी तुम ही मन में, रहोगी तुम ही मन में।। मैं कल भी था तेरा ही मैं अब भी हूँ तेरा ही यही बस माँगा जग में रहूँ हरदम तेरा ही तुम्हीं बहती रहती थी, तुम्हीं बहती रहती हो, लहू बन मेरे तन में, लहू बन मेरे तन में।।१।। तुम्हीं से धड़का यह दिल  तुम्हीं से धड़क रहा दिल  रहोगी जब तक दिल में  तभी तक धड़केगा दिल तुम्हीं धड़कन थी मेरी, तुम्हीं धड़कन हो मेरी, रहोगी तुम धड़कन में, रहोगी तुम धड़कन में।।२।। नहीं थी तुम जीवन में  नहीं था कुछ जीवन में  तुम्हीं सँग सज-धज आईं बहारें इस जीवन में तुम्हीं जीवन थी मेरा, तुम्हीं जीवन हो मेरा  रहोगी तुम जीवन में, रहोगी तुम जीवन में।। - राजेश मिश्र

जागो सनातनियों

उदयाचल से सूरज निकला घोर अँधेरा भाग रहा है। सनातनी वीरों! तुम सोए देखो दुश्मन जाग रहा है।। वर्षों बाद समय बदला है  तुम उन्नीस से बीस हुए। रही सैकड़ों साल गुलामी  तब फिर सत्ताधीश हुए।  सतत सतर्क रहो तुमसे यह वचन राष्ट्र अब माँग रहा है। सनातनी वीरों! तुम सोए देखो दुश्मन जाग रहा है।।१।। हाँ वे अब कमजोर हुए हैं लेकिन हार नहीं मानी है। चुप हैं, पर मौका मिलते ही हमला करने की ठानी है। घाती हैं, वे घात करेंगे उनका यह अंदाज रहा है। सनातनी वीरों! तुम सोए देखो दुश्मन जाग रहा है।।२।। काश्मीर में सिद्ध किया फिर जड़ उन्मादी अंधे हैं वे। देश-राष्ट्र का अर्थ न कोई बस इस्लामी बंदे हैं वे। लाल चौक रिपु रुधिर से धो दो  जो मस्तक का दाग रहा है। सनातनी वीरों! तुम सोए देखो दुश्मन जाग रहा है।।३।। - राजेश मिश्र 

कुटिल भ्रमर तेरी यादें

कुटिल भ्रमर तेरी यादें।। हृदय-कमल पर मँडराती हैं  मधुरिम मधुरस ले जाती हैं कर-करके मीठी बातें।।१।। मन मादकता भर जाती हैं  तन को घायल कर जाती हैं  हौले-हौले कर घातें।।२।। अतिशय निर्दय निष्ठुर निर्मम कर जाती हैं नयनों को नम  दे जातीं विरहिन रातें।।३।। - राजेश मिश्र

सबका साथ नहीं हो सकता

एक पक्ष सिर पर बैठाए, अरु दूजा तलवार चलाए सबका साथ नहीं हो सकता। लव विश्वास नहीं हो सकता।। सदियों का इतिहास देख लो  दूर देख लो, पास देख लो  काफिर तो काफिर हैं, उनका अपनों से नित घात देख लो  एक पक्ष सँग ईद मनाए, अरु दूजा पत्थर बरसाए सबका साथ नहीं हो सकता। लव विश्वास नहीं हो सकता।।१।। वे धर्मान्ध कुटिल कामी खल कुत्सित क्रूर भेड़ियों के दल खाल भेद की ओढ़ घूमते  मौका मिलते ही करते छल भाँति-भाँति जेहाद चलाएँ, हर चौराहे पर फट जाएँ उनका साथ नहीं हो सकता। लव विश्वास नहीं हो सकता।।२।। उनके जेहन में किताब है हूर मिलेंगी, यही ख्वाब है दुनिया में यदि अमन-चैन है  फिर इनको अतिशय अज़ाब है जितनी ऊँची शिक्षा पाते , उतने कट्टर होते जाते  उनका साथ नहीं हो सकता। लव विश्वास नहीं हो सकता।।३।। लय = रंचमात्र, थोड़ा, अल्प। अज़ाब = तकलीफ, दुख, कष्ट। - राजेश मिश्र 

कुछ तो आस अभी बाकी है

आशाएँ अब भी जीवित हैं, कुछ तो साँस अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। दूर भले उड़ जाए पंछी साँझ ढले घर आ जाता है  राह लक्ष्य की खो जाए पर घर का रस्ता पा जाता है उड़ने दो उन्मुक्त गगन में, मन विश्वास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। बाँध सका है जग में कोई  पानी और जवानी को कब? हृदय उमड़ते भावों से नित निकली नई कहानी को कब? तन-मन तृप्त हुए कब किसके? शाश्वत प्यास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। ऐसे क्यों निस्तेज पड़े हो  मरघट के मुर्दों जैसे तुम? जब तक तन में प्राण शेष हैं  हार भला सकते कैसे तुम? उठो और निज स्वाँग रचाओ, जीवन-रास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। - राजेश मिश्