सब बदहवास क्यों हैं? बचपन निराश क्यों है? सारे सम्बन्धों में, इतनी खटास क्यों है? बेटे-बेटियों बीच, माता उदास क्यों है? रात्रि की नीरवता में, मौन अट्टहास क्यों है? आजीवन दूर रहा, आज फिर पास क्यों है? बुझ चुकी आँखों में, सहसा प्रकाश क्यों है? ठुकराया बार-बार, उसी से आस क्यों है? गीदड़ों की गोष्ठी में, बहुत उल्लास क्यों है? सुख-सम्पत्ति सम्पन्न, जलधि में प्यास क्यों है? नियति के अधर-द्वय पर, यह कुटिल हास क्यों है? - राजेश मिश्र
भींगी-भींगी आँखों ने, तुमको जाते देखा था। शायद तुमको याद नहीं। छोड़ो, कोई बात नहीं।। जब तुम डोली में बैठी, बुनती सपने साजन के। था दृग-द्वय से बीन रहा, टूटे टुकड़े मैं मन के। मन के टूटे टुकड़ों ने, तुमको जाते देखा था। शायद तुमको याद नही। छोड़ो, कोई बात नहीं।।१।। याद किए सारे सपने देखे थे मिलकर हमने। कंधे पर सिर रख मेरे की थीं जो बातें तुमने। उन सपनों की किरचों ने, तुमको जाते देखा था। शायद तुमको याद नहीं। छोड़ो, कोई बात नहीं।।२।। फूल खिलाए थे तुमने हृदय लगा जो भावों के छलनी कर डाला सीना काँटा बनकर घावों से। भावों के उन घावों ने, तुमको जाते देखा था। शायद तुमको याद नहीं। छोड़ो, कोई बात नहीं।।३।। - राजेश मिश्र