सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अपरिमित कष्ट होता है

पुराने घाव मत छेड़ो, अपरिमित कष्ट होता है। अगर कटु सत्य, मत बोलो, अपरिमित कष्ट होता है।। छुवा तुमने गुलों को जब हँसे वे खिलमिलाकरके, न काँटों से प्रिये! लिपटो, अपरिमित कष्ट होता है।। नहीं सम्भव, नहीं कह दो, न झूठे स्वप्न दिखलाओ, न देकर आसरा तोड़ो, अपरिमित कष्ट होता है।। भला है तो भला कह दो, बुरा है तो बुरा कह दो, मगर कुल-जाति मत उघटो, अपरिमित कष्ट होता है।। न हो संगी समय फिर भी अकेले बीत जाता हैं, न अपनाकर कभी छोड़ो, अपरिमित कष्ट होता है।। जिन्होंने थाम कर उँगली सिखाया दौड़ना जग में, न उनसे मुँह कभी मोड़ो, अपरिमित कष्ट होता है।। - राजेश मिश्र
हाल की पोस्ट

अमन की आशा

भाईचारे के नकाब में  छलती रही अमन की आशा। पीठ में खंजर भोक-भोंक कर चलती रही अमन की आशा।। गंगा की उज्ज्वल धारा के श्यामल यमुना से संगम पर तहजीबों का नाम चलाकर पलती रही अमन की आशा।। श्रुति-पुराण को, धर्म-ध्यान को ऋषि-मुनियों के अगम ज्ञान को झूठ और पाखंड बताकर फलती रही अमन की आशा।। कभी जाति के नाम लड़ाकर  कभी कहीं आतंक मचाकर हिंदू-रक्त-तेल पी-पीकर जलती रही अमन की आशा।। बहन बेटियों के गौरव को  धर्म बदलकर छत से, बल से  सदियों से पैरों के नीचे  दलती रही अमन की आशा।। अब भी सोते रह जाओगे  लुट जाओगे, मिट जाओगे जाग्रत जन को सदा-सदा से खलती रही अमन की आशा।। - राजेश मिश्र

पहला-पहला पत्र तुम्हाराजबसे मैंने पाया है

पहला-पहला पत्र तुम्हारा जबसे मैंने पाया है। कब एकाकी होऊँ, खोलूँ मन अतिशय अकुलाया है।। कितना प्यारा पल होगा जब पत्र तुम्हारा बाँचूँगा। प्रथम पत्र का अनुपम अनुभव अंतस् ही में जाँचूँगा। वक्ष लगाए घूम रहा हूँ जबसे यह खत आया है। कब एकाकी होऊँ, खोलूँ मन अतिशय अकुलाया है।।१।। जो भी काम अधूरा दिखता तुरत वहाँ लग जाता हूँ तज आलस्य-प्रमाद, सजग हो सद्य उसे निपटाता हूँ नहीं चाहता कोई आए कहते तुम्हें बुलाया है। कब एकाकी होऊँ, खोलूँ मन अतिशय अकुलाया है।।२।। विह्वल विह्वल हृदय हमारा  सँभली सँभली धड़कन है तपन बढ़ रही, अधर शुष्क हैं अंग अंग में कंपन है अनियंत्रित तन, झूम रहा मन स्वेद माथ पर छाया है। कब एकाकी होऊँ, खोलूँ मन अतिशय अकुलाया है।।३।। भीड़ चतुर्दिक, अवसर ढूँढूँ पत्र खोल पढ़ पाऊँ मैं। तुम अति दूर, बताओ कैसे हिय का हाल बताऊँ मैं? जिनका साथ सदा से प्रिय था, सबसे जी उकताया है। कब एकाकी होऊँ, खोलूँ मन अतिशय अकुलाया है।।४।। - राजेश मिश्र

मैंने तुमको देखा है

दबे पाँव छुप-छुपकर जाते मैंने तुमको देखा है। खिड़की का परदा सरकाते मैंने तुमको देखा है।। चाहे जितना भी बोलो तुम मुझसे तुमको प्रेम नहीं, मेरी चर्चा पर मुसकाते मैंने तुमको देखा है।। कल तक दाँत-कटी-रोटी का जिससे घन संबंध रहा,  आज उसी से आँख चुराते मैंने तुमको देखा है।। छोटी सी इक चूक हुई है, क्यों इतने उद्वेलित हो? गलती करते और छुपाते मैंने तुमको देखा है।। अपने बारे में कुछ सुनकर इतना क्षूब्ध न होवो तुम, निंदा-रस आनंद उठाते मैंने तुमको देखा है।। बात-बात पर नैतिकता की बात उठाना ठीक नहीं,  उन गलियों में आते-जाते मैंने तुमको देखा है।। - राजेश मिश्र

प्रिय! तुमने अन्याय किया है।

प्रिय! तुमने अन्याय किया है। वाणी से जो-जो करना था, आँखों से अंजाम दिया है। प्रिय! तुमने अन्याय किया है।। भाव हृदय के जब भी शब्दों में ढल आए  क्रूर मौन से लड़कर बोल नहीं बन पाए  विवश वाक् की हर पीड़ा को मर्यादा का नाम दिया है।  प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।१।। अधरो की कलियों ने जब-जब खुलना चाहा मधुमय हो श्रवणों में जब-जब घुलना चाहा प्रेम-पयस् पावन-प्रवाह को निर्दयता से थाम लिया है।  प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।२।। चंचल निर्मल कोमल दृग किसको बतलाएँ सबके कर्तव्यों का थककर बोझ उठाएँ तुमने इन नाजुक अंगों को हद से बढ़कर काम दिया है। प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।३।। - राजेश मिश्र

धर्म-ध्वजा फहराई है

सदियाँ बीतीं, शुभ दिन आया, अवधपुरी हर्षाई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। हर्षित हैं सब देव-देवियाँ हर्षित हैं धरतीवासी  मन प्रसन्न आशान्वित नाचें संभल, मथुरा अरु काशी शीघ्र हमें भी मुक्ति मिलेगी, आँख सजल हो आई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। हर शरणागत, दुखी-दीन को हमने हृदय लगाया है  किंतु कृतघ्नों ने पीछे से  हम पर छुरा चलाया है  छद्मयुद्ध में धर्म निभाकर हमने जान गँवाई है।  सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। करुणा और प्रेम से हमने  उनके आँसू पोंछे हैं प्रत्युत्तर में अश्रु दिया है  वे घाती हैं, ओछे हैं कायरता माना सबने जब हमने दया दिखाई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। रक्तबीज हैं शेष अभी भी धर्मयुद्ध नित जारी है उन्हें समूल नष्ट करने की  अपनी भी तैयारी है साँपों और सँपोलों का वध करने की रुत आई है। सत्य सनातन के गौरव की धर्म-ध्वजा फहराई है।। हर हिंदू अब जाग रहा है  म्लेच्छ मिलेंगे गारत में  लहर लहर लहराएगा अब हर घर भगवा भारत में खोया यश पाने के क्रम में यह पहली अँगड़ाई है  स...

रहोगी तुम ही मन में

तुम्हीं थी मन में मेरे, तुम्हीं हो मन में मेरे,  रहोगी तुम ही मन में, रहोगी तुम ही मन में।। मैं कल भी था तेरा ही मैं अब भी हूँ तेरा ही यही बस माँगा जग में रहूँ हरदम तेरा ही तुम्हीं बहती रहती थी, तुम्हीं बहती रहती हो, लहू बन मेरे तन में, लहू बन मेरे तन में।।१।। तुम्हीं से धड़का यह दिल  तुम्हीं से धड़क रहा दिल  रहोगी जब तक दिल में  तभी तक धड़केगा दिल तुम्हीं धड़कन थी मेरी, तुम्हीं धड़कन हो मेरी, रहोगी तुम धड़कन में, रहोगी तुम धड़कन में।।२।। नहीं थी तुम जीवन में  नहीं था कुछ जीवन में  तुम्हीं सँग सज-धज आईं बहारें इस जीवन में तुम्हीं जीवन थी मेरा, तुम्हीं जीवन हो मेरा  रहोगी तुम जीवन में, रहोगी तुम जीवन में।। - राजेश मिश्र