रीते नैना झर-झर झरते,
झम-झम बरसे सावन।
प्रिय! तेरा संदेश मिला है,
झूम रहा है तन-मन।।
कितने सावन बीते,
सूखे रीते-रीते।
प्रेम-लता को हमने
दृग-निर्झर से सींचे।
प्रेम-पुष्प पुनि आज खिला है,
महका है फिर उपवन।
झूम रहा है तन-मन।।१।।
उर ऊसर था मेरा,
संग मिला जब तेरा।
उर्वरता भर आयी,
आया नया सवेरा।
हरियाली बंजर में छाई,
उदित हुआ मन मधुवन।
झूम रहा है तन-मन।।२।।
विधि को मिलन हमारा
लेकिन रास न आया।
टूटा प्रेम-घरौंदा,
हमने साथ बनाया।
चकनाचूर हुए सब सपने,
बिखर गया था जीवन।
झूम रहा है तन-मन।।३।।
- राजेश मिश्र
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