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अगस्त, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कायर

बैठी थी वह दो मिनट का अवकाश लेकर अपने दुधमुँहे बच्चे के साथ ममता से सराबोर समेटे हुए आँचल में उस नवजात को स्तनपान कराती, दुलराती ! मगन था वह भी माँ के आँचल तले अमृत-रस-पान करता ...

सपने बड़े हो गये हैं !

अहा ! वह बचपन. प्रतिदिन प्रात: उषा जब द्वार के पट खोलती थी नवोदित अरुण की चंचल रश्मियाँ घुस आती थीं मेरे कमरे में एक छोटे से झरोखे से भागती हुई, प्रकाश भरने नवचेतना, नयी स्फूर्...

श्रीराम

सत्य-चित्-आनन्दघन प्रभु राम सब सुखधाम हैं। भक्त-परिपालक, मृदुल-चित प्रभु सकल गुण-ग्राम हैं। मातु-पितु-गुरु-बन्धु हित रत प्रिय प्रजा परित्राण हैं। कौशलेय नमस्य निशिदिन कैकयी के प्राण हैं।। मनुज तन धारे पधारे देव-नर दुख हरण को। गाधिसुत के संग निकले माँ अहिल्या तरण को। खण्ड हर-कोदण्ड करि प्रभु जनक की पीड़ा हरी। भृगुतनय के संग मिलि पुनि थी तनिक क्रीड़ा करी ।। जानकी को साथ ले प्रभु पुर अयोध्या आ गये। हर्ष से उल्लसित जन-मन स्वर्ग-निधि ज्यों पा गये। प्रिय प्रजा की घोर इच्छा राम ही युवराज हों। चक्रवर्ती भूप दशरश क्यों न प्रमुदित आज हों।। पर प्रजा-हित राम ने वनगमन का निर्णय किया। मति फिरी कैकयसुता की भूप से हठ वर लिया। वेष धर यति का चले वन राम-लक्ष्मण-जानकी। मातु-इच्छा अरु पिता के लाज रखने आन की।। चरण केवट ने पखारा तर गया संसार से। जगत-तारणहार को ले नाव में निज प्यार से। हर्ष से स्वागत किये मुनि-वृंद प्रभु श्रीराम का। जानकी के कंत का प्रभु परम करुणाधाम का ।। अब समय था आ चला सब राक्षसों के अन्त का। नाश के आतंक का अरु क्षेम के सब सन्त का। राम ने माया रची...

माँ भारती

शोभे शुभ्र हिमाद्रि, शिरोभूषण शिख सुन्दर । पाँव पखारत उदधि, मगन मन मुदित मनोहर ।। सिञ्चति सुरसरि सूर्य-सुता पावन शीतल जल । शस्य श्याम परिधान, परम परिकीर्ण परिचपल ।। सुरभित सरस समीर, श्वाँस त्रय ताप नसावन । चारु चंद्रिका चपल, मधुर स्मित सरल सुहावन ।। गुञ्जत गायन गाथ, दसों-दिश जल-थल-नभ में । वेद-ऋचा धुनि नाद, गहन गिरि-कानन जन में ।। ज्ञान-ध्यान-तप-योग, दिया तूने संसृति को । चरमोत्कर्ष प्रदान, किया अनुपम विधि-कृति को ।। अञ्चल अमिय असीम, दिव्य औषधि की जननी । सुयश अमित माँ कहत, थकित गणनायक अँकनी ।। सुर-नर-मुनि नित पूज्य, परम पावन ऐश्वर्या । धन्य-धन्य वह देह, मिटे माँ की परिचर्या ।।