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कलि के दोहे

करते कलयुग में सदा, वंचक ही हैं राज । वचन-कर्म में भेद अरु, नहिं प्रपंच से लाज ।। मैं हूं, मैं बस मैं यही, है कलयुग का नेम । करुणा मरती जा रही, सूख रहा है प्रेम ।। वंचक का कलिकाल में, ...