कलि के दोहे सितंबर 08, 2019 करते कलयुग में सदा, वंचक ही हैं राज । वचन-कर्म में भेद अरु, नहिं प्रपंच से लाज ।। मैं हूं, मैं बस मैं यही, है कलयुग का नेम । करुणा मरती जा रही, सूख रहा है प्रेम ।। वंचक का कलिकाल में, ... और पढ़ें