सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यादों के झरोखों से

कर्मरत इस थकित मन ने, ज्यों तनिक विश्राम पाया। मौन ज्यों मुखरित हुआ अरु सलिल सुरभित कुनमुनाया। ज्यों झुकीं पलकें दृगों पर ज्यों तिमिर आँखों में आया। खोल खिड़की स्मृति-पटल की बिम्ब तेरा झिलमिलाया।। याद फिर आने लगे वो प्यार के मौसम सुहाने। झूमतीं गातीं हवाएँ वो मधुर मीठे तराने। खिलखिलाती-सी चहकती चन्द्रिमा के वो फसाने। मिलन के मासूम-से वो स्नेह में लिपटे बहाने।। देखना, पलकें झुकाना, पर नहीं कुछ बोल पाना। साथ रहना, कुछ न कहना, किन्तु कब प्रिय दूर जाना? दिवस हो या हो निशा, कब चैन किंचित कौन पाया? खोल खिड़की स्मृति-पटल की बिम्ब तेरा झिलमिलाया।।१।। जब कभी भी तुम गुजरती कृष्ण केशों को उड़ाती। साँस से अपनी गमकती, साँस मेरी महमहाती। मदन के तूणीर-से ले स्नेह-शर दृग पर नचाती। भेदती मेरे हृदय को विजय दर्पित मुस्कुराती।। यूँ लगे तपती धरा पर  वारि-बूँदें गिर रही हों। मृत्तिका सोंधी सुरभि से श्वाँस सुरभित कर रही हो। प्रिय धरित्री को जलद...