अन्तस् आच्छादित घन तम से, बाहर शुद्ध हुआ जाता है।
कपटी बुद्ध हुआ जाता है।।
बोली में सम्मान लिये है,
मुखड़े पर मुस्कान लिये है।
हँस-हँसकर है गले लगाता,
पर कर में किरपान लिये है।
उसके आडम्बर पर देखो, जन-जन लुब्ध हुआ जाता है।
कपटी बुद्ध हुआ जाता है।।१।।
धीरे-धीरे पास पहुँचता
मीठी-मीठी बातें करता।
जब सम्बन्ध सुदृढ़ हो जाता
अवसर पा पुनि घातें करता।
उसकी काली करतूतों पर, यह मन क्रुद्ध हुआ जाता है।
कपटी बुद्ध हुआ जाता है।।२।।
नये-नये नित स्वाँग रचाता,
भोले-भाले लोग लुभाता।
पापी, पाखण्डी, व्यभिचारी,
स्वप्न-जाल में उन्हें फँसाता।
जिसको उसका सच बतलाओ, वही विरुद्ध हुआ जाता है।
कपटी बुद्ध हुआ जाता है।।३।।
- राजेश मिश्र
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