पावन परम, कलि-मल हरन, जग-जननि का, सुखधाम का,
परिणय-दिवस सिय-राम का।।
मन मुदित, पुलकित जानकी,
मूरति हृदय रख राम की।
दुलहन बनी, सज-धज चली ,होने सदा श्रीराम की।
हरषत चली, सँकुचत चली, करने वरण छविधाम का।।
परिणय-दिवस सिय-राम का।।१।।
शोभा अमित रघुनाथ की,
छवि कोटि हर रतिनाथ की।
मन मुग्ध निरखि विदेह का,
आँखें सजल सिय मातु की।
आनंद-घन, करुणायतन, रघुवर सकल गुण-ग्राम का।
परिणय-दिवस सिय-राम का।।२।।
रिपुदमन, भरत, लखन लला,
श्रुतिकीर्ति, मांडवि, उर्मिला।
चारों युगल लखि क्यों नहीं,
मिथिला विमोहित हो भला।
यह शुभ लगन, मंगलकरन, हो हेतु जग कल्यान का।
परिणय-दिवस सिय-राम का।।३।।
- राजेश मिश्र
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