जब से तुमने दामन छोड़ा
प्रिय! हम हँसना भूल गए।
मर्यादा पीड़ा की टूटी,
और तड़पना भूल गए।।
जिन हाथों को हाथ में लेकर
घंटों बैठे रहते थे।
मौन मुखर था, बस धड़कन से
बातें करते रहते थे।
उन सुकुमार स्निग्ध हाथों में
मेहँदी रचना भूल गए।
मर्यादा पीड़ा की टूटी,
और तड़पना भूल गए।।१।।
जिन नैनों की गहराई में
पल में डूबे जाते थे।
जल बिन मीन तड़पते थे तुम
जिस दिन देख न पाते थे।
आँसू सारे सूख गए हैं,
नैन छलकना भूल गए।
मर्यादा पीड़ा की टूटी,
और तड़पना भूल गए।।२।।
नख-शिख सजकर, साँझ-सवेरे
तुमसे मिलने आते थे।
मेरे मुखमण्डल पर तेरे
दृग-मधुव्रत मँडराते थे।
जोगन बनकर घूम रहे हैं
सजना-सँवरना भूल गए।
मर्यादा पीड़ा की टूटी,
और तड़पना भूल गए।।३।।
- राजेश मिश्र
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