वंश-वृक्ष तनु-मूल पिता है, माँ शाखा-टहनी-पत्ते।
सुन्दर सस्य*-सुमन बच्चे।।
जड़ अदृश्य आधार वृक्ष का,
भू के अन्दर रहता है।
नित-प्रति नये कष्ट सहकर भी
उसको थामे रहता है।
तना कठोर खुरदरा दीखे,
अन्दर रस लहराता है।
जड़ें जुटातीं दाना-पानी,
वह ऊपर पहुँचाता है।
पिता कभी करता न प्रदर्शित, कितने भी खाये धक्के।
सुन्दर सस्य-सुमन बच्चे।।१।।
शाखायेॅ-टहनी-पत्ते मिल
शेष व्यवस्था करते हैं।
जड़ें जुटायें जो धरती से
उसे प्रसंस्कृत करते हैं।
सूरज का प्रकाश ले पत्ते
उससे भोज्य बनाते हैं।
सब अवयव पोषित होते हैं,
और सभी हर्षाते हैं।
माता गृह, गृहिणी, गृहेश्वरी, सोचे सुख-दुख का सबके।
सुन्दर सस्य-सुमन बच्चे।।२।।
स्वस्थ, सुभग, पोषित तरु पर पुनि
कोमल कलियाँ खिलती हैं।
साथ समय के विकसित होतीं,
विकसित होकर फलती हैं।
फल में बीज पनपते-बढ़ते,
बीजों में भवितव्य छुपा।
धर्म और संस्कृति का सारा
तत्त्व और गन्तव्य छुपा।
बच्चों की रखवाली करना, शत्रु मिटाकर या मिट के।
सुन्दर सस्य-सुमन बच्चे।।३।।
सस्य = फल
- राजेश मिश्र
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