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सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनुरोध

दिलजोई का कुछ तो अब सामान कर दोस्त और दुश्मन की तू पहचान कर. मिट जाएँ दुनिया से सारी नफरतें अब तो कुछ ऐसा ही इंतजाम कर. दूरियां बढ़ती रही हैं आज तक खाइयाँ पट जाएँ ऐसा काम कर. जो मिटा दे दर्द हर एक कौम का लागू कोई ऐसा संविधान कर. राम और रहीम में है फर्क क्या नासमझ न इनको तू बदनाम कर. दे अमन की रोशनी सारे जहाँ को कर सके तो ऐसा ही कुछ काम कर.

माँ हूँ मैं!

माँ हूँ मैं! पल रही हूँ कोख में एक माँ की लेकिन डरी-सहमी सी- क्या मैं जन्म ले पाऊँगी? ये दुनिया देख पाऊंगी? कहीं गर्भ में ही मार तो नहीं दी जाऊंगी? माँ हूँ मैं! उमंगो से भरी कुलाचें भर रही हूँ मैं माँ के प्यार तले, पापा के दुलार तले लेकिन कांप उठती हूँ सोचकर क्या मैं ससुराल जा पाऊँगी? क्या मैं माँ बन पाऊंगी? कहीं जला तो नहीं दी जाऊंगी दहेज़ के लिए? माँ हूँ मैं! बेटी की शादी हो गई है सुंदर सी बहू है मेरी, कभी-कभी मिल पाती हूँ वृद्धाश्रम में रह रही हूँ न बेटे का घर थोड़ा छोटा है! माँ हूँ मैं! चिंता लगी रहती है हमेशा अपने बच्चों की घुलती रहती हूँ उनकी याद में भगवान् उन्हें सुखी रखें! सदा सुखी रखें!!

मुझको भी पढ़ना है

लाओ, मेरा बस्ता दे दो, मुझको भी अब पढ़ना है. सीढियाँ सफलता की, जीवन में अब चढ़ना है. भूखे रहकर बहुत मैं सोया, पेट मुझे भी भरना है. फटे-पुराने छोड़ चीथड़े, कपड़े नए पहनना है. बोझ तले मैं तड़प रहा था, अम्बर में अब उड़ना है. पुरुषार्थ-चतुष्टय प्राप्ति के पथ पर, मुझको आगे बढ़ना है.