बैठी थी वह दो मिनट का अवकाश लेकर अपने दुधमुँहे बच्चे के साथ ममता से सराबोर समेटे हुए आँचल में उस नवजात को स्तनपान कराती, दुलराती ! मगन था वह भी माँ के आँचल तले अमृत-रस-पान करता हुआ परमसुख, परमानंद की अनुभूति के साथ ! तभी अचानक ! एक झटका लगा जोर का, बहुत जोर का लगा जैसे आ गया हो कोई प्रलयंकारी भूकम्प काँप उठी हो धरती चिग्घाड़ उठा हो आसमान और वह नवजात जा गिरा दूर अपनी माँ की गोद से कंकड़ीली, ऊबड़-खाबड़ तप्त भूमि पर. गिरी पड़ी थी उसकी माँ भी तड़पती, कराहती असीम वेदना से पकड़े हुए अपनी पीठ को एक हाथ से, और फैलाये हुए दूसरा हाथ अपने अबोध शिशु की ओर चीखती, चिग्घाड़ती, बिलबिलाती, गिड़गिड़ाती देखती हुई कातर आँखों से कभी अपने निरपराध निरीह पुत्र को तो कभी उस दैत्याकार, बर्बर, क्रूर ठेकेदार को, जिसकी लात के आघात से धरती पर पड़ी कराह रही थी वह और उसका बच्चा भी. रो रहे थे माँ बेटे तड़प रहे थे, चिग्घाड़ रहे थे और.. इस अपार वेदना और करुण क्रन्दन के बीच सोच रहा था वह नन्हा मासूम प्रयास कर रहा था समझने का इस पूरे घटनाक्रम को, और कोशिश कर रहा था जानने की - &q