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माँ भारती

शोभे शुभ्र हिमाद्रि, शिरोभूषण शिख सुन्दर ।
पाँव पखारत उदधि, मगन मन मुदित मनोहर ।।

सिञ्चति सुरसरि सूर्य-सुता पावन शीतल जल ।
शस्य श्याम परिधान, परम परिकीर्ण परिचपल ।।

सुरभित सरस समीर, श्वाँस त्रय ताप नसावन ।
चारु चंद्रिका चपल, मधुर स्मित सरल सुहावन ।।

गुञ्जत गायन गाथ, दसों-दिश जल-थल-नभ में ।
वेद-ऋचा धुनि नाद, गहन गिरि-कानन जन में ।।

ज्ञान-ध्यान-तप-योग, दिया तूने संसृति को ।
चरमोत्कर्ष प्रदान, किया अनुपम विधि-कृति को ।।

अञ्चल अमिय असीम, दिव्य औषधि की जननी ।
सुयश अमित माँ कहत, थकित गणनायक अँकनी ।।

सुर-नर-मुनि नित पूज्य, परम पावन ऐश्वर्या ।
धन्य-धन्य वह देह, मिटे माँ की परिचर्या ।।

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अहमद चाचा

लन्दन के हीथ्रो एअरपोर्ट से जैसे ही विमान ने उड़ान भरी, श्याम का दिल बल्लियों उछलने लगा. बचपन की स्मृतियाँ एक-एक कर मानस पटल पर उभरने लगीं और जैसे-जैसे विमान आसमान की ऊँचाई की ओर बढ़ता गया, वह आस-पास के वातावरण से बेसुध अतीत में मग्न होता चला गया. माँ की ममता, पिताजी का प्यार, मित्रों के साथ मिलकर धमाचौकड़ी करना, गाँव के खेल, नदी का रेता, हरे-भरे खेत, अनाजों से भरे खलिहान और वहां कार्यरत लोगों की अथक उमंग, तीज त्यौहार की चहल-पहल आदि ह्रदय को रससिक्त करते गए. गाँव के खेलों की बात ही कुछ और है. चिकई, कबड्डी, कूद, कुश्ती, गिल्ली-डंडा, लुका-छिपी, ओल्हा-पाती, कनईल के बीज से गोटी खेलना, कपड़े से बनी हुई गेंद से एक-दूसरे को दौड़ा कर मारना आदि-आदि. मनोरंजन से भरपूर ये स्वास्थ्यप्रद खेल शारीरिक और मानसिक उन्नति तो प्रदान करते ही हैं, इनमें एक पैसे का खर्च भी नहीं होता है. अतः धर्म, जाति, सामाजिक-आर्थिक अवस्था से निरपेक्ष सबके बच्चे सामान रूप से इन्हें खेल सकते हैं. इन सबसे अलग एक सबसे प्यारी चीज़ थी जिसके लिए वह वर्षों व्याकुल रहा, वह थे अहमद चाचा. हिन्दुओं के इस गाँव में एक अहमद चाचा का ही प

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