सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कलि के दोहे

करते कलयुग में सदा, वंचक ही हैं राज । वचन-कर्म में भेद अरु, नहिं प्रपंच से लाज ।। मैं हूं, मैं बस मैं यही, है कलयुग का नेम । करुणा मरती जा रही, सूख रहा है प्रेम ।। वंचक का कलिकाल में, करते हैं सब मान । सच्चरित्र का हो भले, मन में बहु सम्मान ।। नंगा जो जितना बड़ा, उतना पूजा जाय । कलि में अपमानित रहे, जिसका सरल सुभाय ।।