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साथ-साथ चलते रहना है

लक्ष्य कठिन है, नहीं असंभव,
साथ-साथ चलते रहना है।
बाधाएँ पग-पग आएंगी,
जय करते, बढ़ते रहना है।।

भला महल में बैठ बताओ
किसने, क्या इतिहास रचा?
सात द्वार के भीतर छुपकर 
भी क्या कोई शेष बचा?
मृत्यु अटल है, आएगी ही,
उससे क्या घबराना है?
नियत काल है, दशा-जगह है,
जीते क्यों मर जाना है?

याद रखो! जब तक जीवन है,
धर्मयुद्ध लड़ते रहना है।
बाधाएँ पग-पग आएंगी,
जय करते, बढ़ते रहना है।।१।।

युगों-युगों तक देव लड़े रण
असुर, दैत्य, दानव दल से।
हारे भी, पर लड़े पुन: पुनि,
छल को जीता तप-बल से।
महल छोड़, वनवासी बनकर,
रावण से रण राम लड़े।
किया व्ध्वंस आतंक कंस का,
आजीवन रण कृष्ण लड़े।

अर्जुन-सा वध धूर्त सगों का,
धर्म हेतु करते रहना है।
बाधाएँ पग-पग आएंगी,
जय करते, बढ़ते रहना है।।२।।

गुरु गोविंद, प्रताप, शिवाजी 
के तलवारों-भालों ने।
शत्रु-रक्त से भारत माँ की
माँग सजा दी लालों ने।
रामचन्द्र, आजाद, भगतसिंह 
माटी पर बलिदान हुए।
लक्ष्मी, दुर्गा, चेनम्मा की
अमर कीर्ति के गान हुए।

बन सुभाष हर विषम परिस्थिति 
में गाथा गढ़ते रहना है।
बाधाएँ पग-पग आएंगी,
जय करते, बढ़ते रहना है।।३।।

- राजेश मिश्र 

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