ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।
आनंद मन न समाई, हरष हियँ तीनहुँ माई।।
गिरत उठत पुनि-पुनि प्रभु धावत
भागत दूर निकट फिरि आवत
किलकत हँसत ठठाई, हरष हियँ तीनहुँ माई।
ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।।
रुकत झुकत घुटनन से झाँकत
करत ठिठोली मातहि ताकत
अद्भुत करें लरिकाई, हरष हियँ तीनहुँ माई।
ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।।
नृप दसरथ सब भाँति निछावर
निरखि-निरखि पुलकित प्रिय रघुबर
गुड़ गूँगा ज्यों खाई, हरष हियँ तीनहुँ माई।
ठुमुकि चलत रघुराई, हरष हियँ तीनहुँ माई।।
- राजेश मिश्र
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