दरस दिये रघुराई, हृदय गति कहि नहिं जाई।
मनहिं मनहिं मुसुकाई, हृदय गति कहि नहिं जाई।।
रूप सलोना सोहत ऐसे
कोटिक काम खडे हों जैसे
भाल तिलक सिर मुकुट बिराजे
कण्ठ माल पीताम्बर साजे
निरखि कलुष मिटि जाई, हृदय गति कहि नहिं जाई।
दरस दिये रघुराई, हृदय गति कहि नहिं जाई।।
बड़भागी प्रभु दरसन पाया
जनम-जनम का पाप गँवाया
नेह कमल चरणन रज लागा
चंचरीक ज्यों पदुम परागा
सब सुधि-बुथि बिसराई, हृदय गति कहि नहिं जाई।
दरस दिये रघुराई, हृदय गति कहि नहिं जाई।।
- राजेश मिश्र
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