देता है उजियारा।
सद्गुरु-कृपा काट देती है
जड़ भव-बंधन सारा।।
उदित जहाँ से बहती झर-झर
सतत ज्ञान की धारा।
तरणी बनकर भवसागर से
जिसने पर उतारा।।
संस्कार की गंगा-यमुना
जिससे नित बहती है।
जिसकी छाया में मानवता
नित पलती रहती है।।
जिसका सुमिरन, जिसका चिंतन
कठिन क्लेश है हरता।
उन गुरु-चरणों में नत तन-मन
जीवन जहाँ सँवरता।
- राजेश मिश्र
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