शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

गुरु-वंदना

गुरु वह दीपक जो जलकर भी 
देता है उजियारा।
सद्गुरु-कृपा काट देती है 
जड़ भव-बंधन सारा।।

उदित जहाँ से बहती झर-झर
सतत ज्ञान की धारा।
तरणी बनकर भवसागर से 
जिसने पर उतारा।।

संस्कार की गंगा-यमुना 
जिससे नित बहती है।
जिसकी छाया में मानवता 
नित पलती रहती है।।
 
जिसका सुमिरन, जिसका चिंतन 
कठिन क्लेश है हरता।
उन गुरु-चरणों में नत तन-मन
जीवन जहाँ सँवरता।

- राजेश मिश्र

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