हिंदी हिंदू-सी उदार है।
सरल सुलभ सबकी शिकार है।
हर आगंतुक को अपनाया,
पर देखो दुश्मन हजार हैं।
कभी कहीं घुसपैठ से पीड़ित,
राजनीति की कहीं मार है।
कन्वर्जन के कुटने करते,
शब्दों पर प्रतिदिन प्रहार हैं।
सब सहकर भी हँसती रहती,
सहनशक्ति इसकी अपार है।
स्वतंत्रता की सेनानी यह,
इसके तेवर धारदार हैं।
जिसने पहला शब्द सिखाया,
मस्तक नत यह बार-बार है।
संस्कृत के नातिन की नातिन,
चंदन भारत के लिलार है।
- राजेश मिश्र
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