आशाएँ अब भी जीवित हैं, कुछ तो साँस अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। दूर भले उड़ जाए पंछी साँझ ढले घर आ जाता है राह लक्ष्य की खो जाए पर घर का रस्ता पा जाता है उड़ने दो उन्मुक्त गगन में, मन विश्वास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। बाँध सका है जग में कोई पानी और जवानी को कब? हृदय उमड़ते भावों से नित निकली नई कहानी को कब? तन-मन तृप्त हुए कब किसके? शाश्वत प्यास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। ऐसे क्यों निस्तेज पड़े हो मरघट के मुर्दों जैसे तुम? जब तक तन में प्राण शेष हैं हार भला सकते कैसे तुम? उठो और निज स्वाँग रचाओ, जीवन-रास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। - राजेश मिश्