सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नवंबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ तो आस अभी बाकी है

आशाएँ अब भी जीवित हैं, कुछ तो साँस अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। दूर भले उड़ जाए पंछी साँझ ढले घर आ जाता है  राह लक्ष्य की खो जाए पर घर का रस्ता पा जाता है उड़ने दो उन्मुक्त गगन में, मन विश्वास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। बाँध सका है जग में कोई  पानी और जवानी को कब? हृदय उमड़ते भावों से नित निकली नई कहानी को कब? तन-मन तृप्त हुए कब किसके? शाश्वत प्यास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। ऐसे क्यों निस्तेज पड़े हो  मरघट के मुर्दों जैसे तुम? जब तक तन में प्राण शेष हैं  हार भला सकते कैसे तुम? उठो और निज स्वाँग रचाओ, जीवन-रास अभी बाकी है। संस्कार हैं शेष अभी भी, कुछ तो आस अभी बाकी है।। - राजेश मिश्

ख्वाहिशों का हर घरौंदा बारिशों में बह गया

मैं सदा से बेसुरा था, बेसुरा ही रह गया। ख्वाहिशों का हर घरौंदा, बारिशों में बह गया।। सुर नहीं थे, लय नहीं थी, ताल का साया नहीं  गीत सारे घुट मरे, भय में रहा, गाया नहीं  मुझे कोई क्यों सुनेगा? सोचता ही रह गया। ख्वाहिशों का हर घरौंदा, बारिशों में बह गया।।१।। जब जहाँ जिसने पुकारा, साथ पाया है मुझे  हर कदम बाँटी हँसी, सबने रुलाया है मुझे मान दे भी हो तिरस्कृत, चुप रहा, सब सह गया। ख्वाहिशों का हर घरौंदा, बारिशों में बह गया।।२।। च्युत हुआ कर्तव्य से, कोई कभी अवसर न था  हर चुनौती से लड़ा, भागा नहीं, कायर न था  तप्त रवि का दर्प तोड़ा, जुगनुओं से दह गया।  ख्वाहिशों का हर घरौंदा, बारिशों में बह गया।।३।। - राजेश मिश्र