विश्व की तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों का प्रादुर्भाव एवं विकास किसी न किसी नदी के तट पर हुआ है. नदियाँ हमेशा से ही किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ रही हैं. अतः मानव-समाज सदा ही इनका ऋणी रहा है एवं जन्मदायिनी माता की भाँति इनका सम्मान करता आया है.
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के पल्लवित एवं पुष्पित होने में जिन नदियों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है, गंगा का स्थान उनमें सर्वोपरि है. गंगा एक पौराणिक नदी है एवं प्राचीन काल से ही हमारी आर्थिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केंद्र-बिंदु रही है. यह गंगोत्री से उद्भूत होकर देश के एक बड़े भू-भाग को अपने अमृतमय मीठे जल से सिंचित करते हुए गंगासागर में जाकर समुद्र के आगोश में समाहित हो जाती है. गंगा का तटीय क्षेत्र भारतभूमि के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है. काशी, प्रयाग, हरिद्वार, कानपुर, कन्नौज, पाटलिपुत्र आदि पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगरों का उद्भव एवं विकास इसी के पवित्र एवं समृद्ध तट पर हुआ है.
किन्तु मानव-सभ्यता के विकास में अत्यंत नजदीकी भूमिका निभाने वाली इन नदियों को इसका भयंकर दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ा है. अनेकों नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है. गंगा भी इससे अछूती नहीं रही है. इसके तट पर विकसित हुए कल-कारखानों का अवशिष्ट तथा नगरों की गन्दगी के इसमें लगातार प्रवाहित होने के कारण इसका अमृतमय जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है. अपने धारा के वेग से जन-समुदाय को रोमांचित कर देने वाली गंगा आज जीर्ण-शीर्ण हो गयी है तथा अनवरत अपने अंत की ओर अग्रसर होती जा रही है. वर्षों से मानव-समाज का उद्धार करती चली आ रही गंगा आज अपने स्वयं के उद्धार के लिए निरीह अवस्था में स्वार्थी मनुष्यों का मुँह ताक रही है.
हालाँकि गंगा को प्रदूषित होने से बचाने एवं इसकी प्रवाहमयता को बनाए रखने के लिए तमाम प्रबुद्ध जनों द्वारा व्यक्तिगत तथा संस्थागत तौर पर कई वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं, किन्तु सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण अभी तक इच्छित परिणाम प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली है. लेकिन यह असफल रहा हो, ऐसा भी नहीं है. इनके प्रयास ने सरकार को इस कार्य में रूचि लेने को बाध्य कर दिया और पिछले वर्ष केंद्र-सरकार ने इस दिशा में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए NGRBA (National Ganga River Basin Authority ) का गठन किया, जिसका उद्देश्य सन २०२० तक गंगा में अनुपचारित मल-प्रवाह या औद्योगिक-अवशिष्ट-प्रवाह पर पूर्णतया लगाम लगाना है.
अब आवश्यकता इस बात की है कि जो लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है, वह सिर्फ फाइलों में सिमटकर न रह जाय, वरन कार्यरूप में परिणत हो. इसके लिए सारे भारतवासियों से मेरी अपील है कि व्यक्तिगत या संस्थागत, जिस स्तर पर भी संभव हो, इस अभियान में अपना अमूल्य योगदान प्रदान करें और आन्दोलन की तीव्रता को इतना बढ़ा दें कि सरकार किसी भी स्थिति में इससे पीछे न हट सके.
जय हिंद, जय भारत!
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के पल्लवित एवं पुष्पित होने में जिन नदियों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है, गंगा का स्थान उनमें सर्वोपरि है. गंगा एक पौराणिक नदी है एवं प्राचीन काल से ही हमारी आर्थिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केंद्र-बिंदु रही है. यह गंगोत्री से उद्भूत होकर देश के एक बड़े भू-भाग को अपने अमृतमय मीठे जल से सिंचित करते हुए गंगासागर में जाकर समुद्र के आगोश में समाहित हो जाती है. गंगा का तटीय क्षेत्र भारतभूमि के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है. काशी, प्रयाग, हरिद्वार, कानपुर, कन्नौज, पाटलिपुत्र आदि पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगरों का उद्भव एवं विकास इसी के पवित्र एवं समृद्ध तट पर हुआ है.
किन्तु मानव-सभ्यता के विकास में अत्यंत नजदीकी भूमिका निभाने वाली इन नदियों को इसका भयंकर दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ा है. अनेकों नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है. गंगा भी इससे अछूती नहीं रही है. इसके तट पर विकसित हुए कल-कारखानों का अवशिष्ट तथा नगरों की गन्दगी के इसमें लगातार प्रवाहित होने के कारण इसका अमृतमय जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है. अपने धारा के वेग से जन-समुदाय को रोमांचित कर देने वाली गंगा आज जीर्ण-शीर्ण हो गयी है तथा अनवरत अपने अंत की ओर अग्रसर होती जा रही है. वर्षों से मानव-समाज का उद्धार करती चली आ रही गंगा आज अपने स्वयं के उद्धार के लिए निरीह अवस्था में स्वार्थी मनुष्यों का मुँह ताक रही है.
हालाँकि गंगा को प्रदूषित होने से बचाने एवं इसकी प्रवाहमयता को बनाए रखने के लिए तमाम प्रबुद्ध जनों द्वारा व्यक्तिगत तथा संस्थागत तौर पर कई वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं, किन्तु सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण अभी तक इच्छित परिणाम प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली है. लेकिन यह असफल रहा हो, ऐसा भी नहीं है. इनके प्रयास ने सरकार को इस कार्य में रूचि लेने को बाध्य कर दिया और पिछले वर्ष केंद्र-सरकार ने इस दिशा में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए NGRBA (National Ganga River Basin Authority ) का गठन किया, जिसका उद्देश्य सन २०२० तक गंगा में अनुपचारित मल-प्रवाह या औद्योगिक-अवशिष्ट-प्रवाह पर पूर्णतया लगाम लगाना है.
अब आवश्यकता इस बात की है कि जो लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है, वह सिर्फ फाइलों में सिमटकर न रह जाय, वरन कार्यरूप में परिणत हो. इसके लिए सारे भारतवासियों से मेरी अपील है कि व्यक्तिगत या संस्थागत, जिस स्तर पर भी संभव हो, इस अभियान में अपना अमूल्य योगदान प्रदान करें और आन्दोलन की तीव्रता को इतना बढ़ा दें कि सरकार किसी भी स्थिति में इससे पीछे न हट सके.
जय हिंद, जय भारत!
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