सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नवल वर्ष तेरा अभिनन्दन हो!

नवल वर्ष तेरा अभिनन्दन हो!

नवल चेतना, नवल सृजन हो,
मंजुल मंगल परिवर्तन हो,
नवल वर्ष की मधुर छाँव में
पुलकित प्रमुदित जन-जीवन हो!
नवल वर्ष तेरा…………………(१)

नवल राह हो, नवल चाह हो,
नवल सोच हो, नव उछाह हो,
नवल भावना, नवल कामना
नवल कर्म, नव जागृत मन हो!
नवल वर्ष तेरा…………………(२)

नव गिरि-कानन, गगन नवल हो,
नवल पवन हो, चमन नवल हो,
मानवता की नवल पौध हो,
और नवल जीवन-दर्शन हो!
नवल वर्ष तेरा…………………(३)

- राजेश मिश्र

टिप्पणियाँ

  1. वाह वाह बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति राजेश जी.."मानवता की नवल पौध हो, और नवल जीवन-दर्शन हो! नवल वर्ष, तेरा अभिनन्दन हो !" आपका भी नव वर्ष मंगल कामनाएँ !

    जवाब देंहटाएं
  2. नवल चेतना, नवल सृजन हो,
    मंजुल मंगल परिवर्तन हो,
    नवल वर्ष तेरी मधुर छाँव में
    पुलकित प्रमुदित जन-जीवन हो!
    नवल वर्ष, तेरा अभिनन्दन हो!

    वाह बहुत सुन्दर भाई........
    नवागत वर्ष हम सभी की सद-इच्छाओं को पूरा करने वाला हो, प्रभु से यही प्रार्थना है.

    जवाब देंहटाएं
  3. नवल राह हो, नवल चाह हो,
    नवल सोच हो, नव उछाह हो,
    नवल भावना, नवल कामना
    नवल कर्म, नव जागृत मन हो!
    नवल वर्ष, तेरा अभिनन्दन हो!
    bahut Sundar rachna.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अहमद चाचा

लन्दन के हीथ्रो एअरपोर्ट से जैसे ही विमान ने उड़ान भरी, श्याम का दिल बल्लियों उछलने लगा. बचपन की स्मृतियाँ एक-एक कर मानस पटल पर उभरने लगीं और जैसे-जैसे विमान आसमान की ऊँचाई की ओर बढ़ता गया, वह आस-पास के वातावरण से बेसुध अतीत में मग्न होता चला गया. माँ की ममता, पिताजी का प्यार, मित्रों के साथ मिलकर धमाचौकड़ी करना, गाँव के खेल, नदी का रेता, हरे-भरे खेत, अनाजों से भरे खलिहान और वहां कार्यरत लोगों की अथक उमंग, तीज त्यौहार की चहल-पहल आदि ह्रदय को रससिक्त करते गए. गाँव के खेलों की बात ही कुछ और है. चिकई, कबड्डी, कूद, कुश्ती, गिल्ली-डंडा, लुका-छिपी, ओल्हा-पाती, कनईल के बीज से गोटी खेलना, कपड़े से बनी हुई गेंद से एक-दूसरे को दौड़ा कर मारना आदि-आदि. मनोरंजन से भरपूर ये स्वास्थ्यप्रद खेल शारीरिक और मानसिक उन्नति तो प्रदान करते ही हैं, इनमें एक पैसे का खर्च भी नहीं होता है. अतः धर्म, जाति, सामाजिक-आर्थिक अवस्था से निरपेक्ष सबके बच्चे सामान रूप से इन्हें खेल सकते हैं. इन सबसे अलग एक सबसे प्यारी चीज़ थी जिसके लिए वह वर्षों व्याकुल रहा, वह थे अहमद चाचा. हिन्दुओं के इस गाँव में एक अहमद चाचा का ही प...

जिंदगी मैं तेरे तराने लिख रहा हूँ

बीते पलों के अफ़साने लिख रहा हूँ। जिंदगी मैं तेरे तराने लिख रहा हूँ॥ हालत कुछ यूँ कि वक्त काटे नहीं कटता, वक्त काटने के बहाने लिख रहा हूँ॥ नदिया किनारे, पेड़ों की छाँव में, देखे थे जो सपने सुहाने लिख रहा हूँ॥ हँसते-खेलते, अठखेलियाँ करते, खूबसूरत गुज़रे ज़माने लिख रहा हूँ॥ धुंधली ना पड़ जाएँ यादें हमारी, नयी कलम से गीत पुराने लिख रहा हूँ॥ जिसके गवाह थे वो झुरमुट, वो झाड़ियाँ, तेरे-मेरे प्यार की दास्तानें लिख रहा हूँ॥

मानव हैं हम द्वेष सहज है

मनुज स्वभाव, नहीं अचरज है। मानव हैं हम, द्वेष सहज है।। निर्बल को जब सबल सताए, वह प्रतिकार नहीं कर पाए, मन पीड़ा से भर जाता है,  द्वेष हृदय घर कर जाता है। वचन कठोर बोलता कोई, जब औकात तोलता कोई, व्यक्ति जहाँ जब डर जाता है, द्वेष हृदय घर कर जाता है। जब कोई प्रिय वस्तु हमारी, लगती जो प्राणों से प्यारी, कोई हमसे हर जाता है, द्वेष हृदय घर कर जाता है। जब जीवन दुखमय हो अपना, सुख बस बन जाए इक सपना, औरों का सुख खल जाता है, द्वेष हृदय घर कर जाता है। कर्महीन जब हम होते हैं, दैव-दैव करते रोते हैं, कर्मठ आगे बढ़ जाता है, द्वेष हृदय घर कर जाता है। आशंका से त्रस्त रहें जब, तिरस्कार-दुत्कार सहें जब, प्रेम हृदय का मर जाता है, द्वेष हृदय घर कर जाता है। यद्यपि द्वेष सहज होता है, किंतु सदा दुखप्रद होता है। शांति हमारी हर लेता है, क्रोध-घृणा मन भर देता है। तिल-तिल हमें जलाता रहता, रोगी सतत बनाता रहता। तन-मन को दूषित कर देता, अंदर विष-ही-विष भर देता। सुहृद दूर हो जाते सारे, सुख सपने बन जाते सारे। कोई निकट नहीं आता है, यह एकाकी कर जाता है। सारा ज्ञान नष्ट कर देता। निर्मल बुद्धि भ्रष्ट कर देता। पापाचा...