मुझ पातकी का मोहन!
उद्धार नाथ कर दो।
तुम बिन अनाथ भटकूँ,
मुझको सनाथ कर दो।।
मद-राग-द्वेष भगवन्!
पल-पल सता रहे हैं।
मैं निस्सहाय निर्बल
निशि-दिन जता रहे हैं।
बन बल अबल, जड़ों से
इनका विनाश कर दो।
तुम बिन अनाथ भटकूँ,
मुझको सनाथ कर दो।।१।।
मतिमन्द मैं न जानूँ
कैसे तुम्हें रिझाऊँ?
किस नाम से पुकारूँ?
कैसे समीप आऊँ?
मुख से न कह सको तो,
संकेत मात्र कर दो।
तुम बिन अनाथ भटकूँ,
मुझको सनाथ कर दो।।२।।
तम ने जकड़ रखा है,
पथ सूझता न कोई।
भटकाव, ठोकरें हैं,
अरु आसरा न कोई।
अपनी शरण में ले लो,
पथ पर प्रकाश भर दो।
तुम बिन अनाथ भटकूँ,
मुझको सनाथ कर दो।।३।।
- राजेश मिश्र
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