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क्षमा करना प्रिय! मुझे तुम…

प्रेम की पूंजी तुम्हारी ले हृदय में घूमता हूं।

भीड़ में सबको भुलाकर बस तुम्हीं को ढूंढता हूं।

उम्र अब चढ़ने लगी है, 

थकन भी बढ़ने लगी है,

हर तरह के भार से अब मुक्त होना चाहता हूं,

भूल कर तुमको स्वयं से युक्त होना चाहता हूं,

क्षमा करना प्रिय! मुझे तुम…


हां हृदय फटता है मेरा, सोचकर तुमसे जुदाई।

इस जुदाई में छिपी है, किंतु दोनों की भलाई।

मोह बढ़ता जा रहा है,

धैर्य घटता जा रहा है,

डिग न जाएं कदम मेरे अडिग रहना चाहता हूं,

छोड़कर अनुकूल धारा उलट बहना चाहता हूं,

क्षमा करना प्रिय! मुझे तुम…


कठिन था मैंने मगर मन को प्रिये! समझ लिया है।

इस जगत में अभिलषित जो भी रहा वह पा लिया है।

मन को मेरे जानती हो,

तुम मुझे पहचानती हो,

बस तुम्हीं हिय में रही हो पुनः कहना चाहता हूं,

कर लिया संकल्प उस पर अटल रहना चाहता हूं,

क्षमा करना प्रिय! मुझे तुम…

क्षमा करना प्रिय! मुझे तुम…

क्षमा करना प्रिय! मुझे तुम…


- राजेश मिश्र 


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