योगेन चित्तस्य पदेन वाचां
मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां
पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि।।
भोजराज जी द्वारा महर्षि पतंजलि की यह स्तुति योगाभ्यासियों में अत्यंत प्रचलित है। योग, व्याकरण और आयुर्वेद के क्षेत्रों में उनकी देन अभूतपूर्व है और मानवजन की आने वाली पीढ़ियों को प्रलयान्त तक लाभान्वित करती रहेगी। चूंकि मैं भी कुछ अंशों तक योग से जुड़ा हुआ हूं, अतः यथासंभव और यथाशक्ति किंचित अध्ययन होता रहता है। इसी क्रम में थोड़ा-बहुत अध्ययन 'पातंजल योगसूत्र' का भी हुआ है।
भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक परंपरा में योग का विशेष स्थान है। इससे संबंधित अनेकानेक ग्रन्थों में 'पातंजल योगसूत्र' का स्थान सर्वोपरि है जो कि योग का सर्वाधिक प्रामाणिक और व्यवस्थित ग्रंथ है। चार पादों (अध्यायों) के केवल 195 सूत्रों में सारा जीवन-दर्शन समेट दिया है जिस पर कई भाष्य और टीकाएं लिखी गईं, लिखी जा रही हैं और लिखी जाएंगी। चाहे जितनी बार गोते लगाइए, इसकी गहराई का पार पाना आसान नहीं है। लेकिन यह सुनिश्चित है कि जितना डूबते जाएंगे, उतना ही आनंद के रस में सराबोर होते जाएंगे और फिर मन यही चाहेगा कि बस यहीं पड़े रहें। प्रत्येक पाद के नाम और सूत्रों की संख्या इस प्रकार है -
१. समाधिपाद - 51 सूत्र
२. साधनपाद - 55 सूत्र
३. विभूतिपाद - 55 सूत्र
४. कैवल्यपाद - 34 सूत्र
प्रथम पाद में योग के स्वरूप समाधि, द्वितीय पाद में उसका साधन, तृतीय पाद में उससे होने वाली सिद्धियों तथा चतुर्थ पाद में कैवल्य का वर्णन किया है।
क्योंकि इस समय संस्कृत-सप्ताह चल रहा है, तो मन में आया कि कुछ और भले नहीं कर सकते, संस्कृत में कुछ पोस्ट तो किया ही जा सकता है। अब इतनी विद्वत्ता तो नहीं है कि संस्कृत में कुछ लेख या कविता इत्यादि लिख सकें, लेकिन कहीं से पढ़कर कुछ लाइनें तो पोस्ट की जा सकती हैं। सोचा कि कुछ अलग विषय लिया जाए तो 'पातंजल योगसूत्र' का विचार मन में आया कि क्यों न इसी का एक सूत्र शब्दार्थ और सूत्रार्थ के साथ प्रतिदिन पोस्ट किया जाए। साथ ही यदि संभव हुआ तो बीच-बीच में किन्ही विषयों पर अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ प्रकाश डालने का भी प्राय एस किया जाए। उसी के प्रति लोगों के ध्यानाकर्षण हेतु यथामति अनधिकार चेष्टा करते हुए यहां इस ग्रंथ के विषय में उल्लेख करने का दुस्साहस किया है। आशा है कि विद्वज्जन मेरी इस धृष्टता के लिए क्षमा करेंगे।
- राजेश मिश्र
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