"विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" पर व्यथित हृदय की अभिव्यक्ति…
आओ, फिर से याद करें हम
भरकर आँख में पानी।
बँटवारे की बर्बरता की
वह कारुणिक कहानी।।
पुश्तों से जाने-पहचाने
गाँव, गली, चौबारे।
चूल्हा, चाकी, चौकी, चौखट
घर, बगिया ये सारे।
इक रेखा से हुए पराये
किसकी कारस्तानी?
बँटवारे की बर्बरता की
वह कारुणिक कहानी।।१।।
धन-दौलत, पुरखों की थाती
लूट लिए आराती।
बेटे कटे, बेटियाँ लुट गईं
फटती है सुन छाती।
लाशों को भर-भर ट्रेनों में
भेजी गई निशानी।
बँटवारे की बर्बरता की
वह कारुणिक कहानी।।२।।
बचते, छुपते, गिरते-पड़ते
जीवन ले जो आए।
अपनापन ले, आस लगाए
आकर हुए पराए।
रोटी, कपड़ा, घर न दे सके
दुश्चरित्र, अभिमानी।
बँटवारे की बर्बरता की
वह कारुणिक कहानी।।३।।
- राजेश मिश्र
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