हर दुख सहकर घबराकर भी
छल-छद्म नहीं मैं सीख सका
प्रभु की अनुकम्पा पाकर ही
इस कल्मष से मैं वीत सका
मुझको तुझ पर विश्वास सदा
तू पग-पग मुझे सँभालेगा
हो भँवर भयंकर कितनी भी
तू हरदम मुझे निकालेगा
तेरे सम्बल के कारण ही
यह पाप न मुझको खींच सका
प्रभु की अनुकम्पा पाकर ही
इस कल्मष से मैं वीत सका
मैं कदम-कदम ठोकर खाया
अरु दर-दर पर अपमान सहा
ध्रुव अटल भरोसा तेरा था
जीवन-पथ पर बढ़ता ही रहा
तेरी अनुभूति रही ऐसी
यह अधम मुझे नहिं रीझ सका
प्रभु की अनुकम्पा पाकर ही
इस कल्मष से मैं वीत सका
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