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रो मत बेटी!

रो मत बेटी! शस्त्र उठा तू,  दुर्धर दुर्गा रूप है। कालरात्रि तू, वक्ष चीर दे, तेरी शक्ति अनूप है।। बहुत हुआ अब, बहुत सहा अब, चुप रहना भी पाप है। कर दे भस्म दरिन्दों को तू, ज्वाला है, तू ताप है। चेन्नम्मा, लक्ष्मी, झलकारी, रत्ना, चम्पा रूप है।। कालरात्रि तू, वक्ष चीर दे, तेरी शक्ति अनूप है।। कलि-कलुषित इन हैवानों को, क्यों जीवन अधिकार हो? हृदय क्रोध धर, शिरोच्छेद कर, हलका भू का भार हो। अबला कब थी? रुद्र-शक्ति तू, चण्डी का पतिरूप है। कालरात्रि तू, वक्ष चीर दे, तेरी शक्ति अनूप है।। - राजेश मिश्र

बँटोगे तो कटोगे

कितनी बार बताएं तुमको? सोये रहे, निपट जाओगे। अब तो योगी भी बोले हैं, बँट जाओगे, कट जाओगे।। पल-पल संकट बढ़ा आ रहा, शत्रु सतत सिर चढ़ा आ रहा। समय नहीं है अब सोने का, सोकर सरबस खो देने का। शस्त्र-शास्त्र से सज्जित ही तुम, उसके सम्मुख डट पाओगे।। अब तो योगी भी बोले हैं, बँट जाओगे, कट जाओगे।। विपदा चौखट तक आ पहुँची, क्यों तुमको यह भान नहीं है? बहू-बेटियाँ चीख रही हैं, फटते तेरे कान नहीं हैं? राम-कृष्ण की सन्तानें तुम, मातृ दमन क्या सह जाओगे? अब तो योगी भी बोले हैं, बँट जाओगे, कट जाओगे।। मार भगाओ, या मर जाओ, बस इतना अधिकार तुम्हें है। कायर बन चुप रहते हो तो, जीवन पर धिक्कार तुम्हें है। भारत माता तुम्हें पुकारे, क्या तुम पीछे हट पाओगे? अब तो योगी भी बोले हैं, बँट जाओगे, कट जाओगे।। - राजेश मिश्र

नेवान कइसे होई

बड़ी लंबी राति बा, बिहान कइसे होई? तनिकऽ सा पिसान बा, नेवान कइसे होई? घरे घीउ-दूध नाहीं, गाइ गभिनाइल। खरचा पहाड़ जइसन,  करजा नऽ भराइल। लइका रूख-सूख खाइ जवान कइसे  होई? तनिकऽ सा पिसान बा, नेवान कइसे होई? कुछहू तऽ भेजि देतऽ अबकी महिनवां। फिसियो भराइल नाहीं, पढ़ी कइसे मुनवां। संगी-संघातिन में फिर मान कइसे होई? तनिकऽ सा पिसान बा, नेवान कइसे होई? रजुआ कऽ काका ओके भेजलेन हं नरखा। आवे के कहले बाटें पड़ले पे बरखा। मिलन मोर- तोर ए परान कइसे होई? तनिकऽ सा पिसान बा, नेवान कइसे होई? - राजेश मिश्र

देश क्या बचे?

खण्ड-खण्ड हो गया समाज, देश क्या बचे! जाति-जाति में विभक्त आज, देश क्या बचे! है बिछा दिया बहेलिये ने जाल इस तरह, बँट गया कबूतरों का झुण्ड आज लोभ में। खड्ग खींचकर खड़ा स्वबन्धु बन्धु के विरुद्ध,  आर्त क्रुद्ध वृद्ध विवश हाथ मले क्षोभ में।  खो चुके समस्त लोक-लाज, देश क्या बचे! खण्ड-खण्ड हो गया समाज, देश क्या बचे! ओज नष्ट, बुद्धि भ्रष्ट, वेग स्वार्थ का प्रबल, धर्म के विरुद्ध युद्ध धर्म-पुत्र लड़ रहा। नीति राजनीति की अनीति से सनी हुई, लोकतन्त्र का कुतन्त्र, धर्मतन्त्र मर रहा। शक्ति शून्य सा दिखे विराज, देश क्या बचे! खण्ड-खण्ड हो गया समाज, देश क्या बचे! - राजेश मिश्र

सुदामा की व्यथा

सँकुचत सुदामा चललँ, मनवाँ में भार बा। कइसे कहब कान्हा से, हालि का हमार बा।। कँखियाँ दबवले बाटँ, तनि एक चाउर। रहि-रहि कूढ़त बाटँ, लागत ह बाउर। पउँवाँ उठावँ जइसे, बड़का पहाड़ बा।। कइसे कहब कान्हा से, हालि का हमार बा।। बचपन क बतिया अब्बो, जियरा दुखारी। छोटहन क गठरी अब त, भइल होइ भारी।  कइसे भरब ऊ जवन, पहिला उधार बा।। कइसे कहब कान्हा से, हालि का हमार बा।। देखत सुदामा कान्हा, मिललँ हहाई। करजा उतरलँ सारा, दुइ मूठ खाई। छत्र तीनि लोक क ई, मितऊ तुहार बा।। भरल भाव नैन चारो, बरसत अपार बा।। - राजेश मिश्र

लाज राखो प्रभु मोर

हे गिरिधारी! कृष्णमुरारी! हे माखन के चोर! लाज राखो प्रभु मोर। श्याम गात पीताम्बर धारी। वाम अङ्ग वृषभानु दुलारी ।। वर वैजन्ती माल वक्ष पर। पंकज लोचन वेणु अधर धर।। छवि अति न्यारी, जन मन हारी, कान्ति काम की थोर, लाज राखो प्रभु मोर। तुम भक्तों के प्राण अधारे। तुमको भक्त प्राण से प्यारे।। कष्ट जनों का देख न पाते। सरबस छोड़ दौड़ कर आते।। विनय हमारी, हे बनवारी!  देखो मेरी ओर, लाज राखो प्रभु मोर। - राजेश मिश्र 

जागो हिंदू, जागो!

जगो जगो उठो उठो हुँकारते बढ़े चलो, कराल शत्रु सामने तृषार्त खड्ग खींच लो। कराहती पुकारती  दुखी निढाल भारती, प्रतप्त शत्रु रक्त से प्रदग्ध भूमि सींच दो।। नहीं दया, नहीं क्षमा निकृष्ट म्लेच्छ वंश को, उदारता नहीं कोई  दुराशयी फकीर को। दुरारुढ़ी दुराग्रही  कुदृष्टियुक्त लंपटी नराधमी पिशाच को बनो प्रचंड चीर दो।। उठो सुपुत्र राम के, उठो सुपुत्र कृष्ण के, अभिन्न अंश रुद्र के, सुसज्ज अस्त्र-शस्त्र हो। पवित्र मातृभूमि की मृदा मलो ललाट पर, शिवा, प्रताप, पुष्य सा प्रवीर हो, जयी बनो।। © राजेश मिश्र