खण्ड-खण्ड हो गया समाज, देश क्या बचे!
जाति-जाति में विभक्त आज, देश क्या बचे!
है बिछा दिया बहेलिये ने जाल इस तरह,
बँट गया कबूतरों का झुण्ड आज लोभ में।
खड्ग खींचकर खड़ा स्वबन्धु बन्धु के विरुद्ध,
आर्त क्रुद्ध वृद्ध विवश हाथ मले क्षोभ में।
खो चुके समस्त लोक-लाज, देश क्या बचे!
खण्ड-खण्ड हो गया समाज, देश क्या बचे!
ओज नष्ट, बुद्धि भ्रष्ट, वेग स्वार्थ का प्रबल,
धर्म के विरुद्ध युद्ध धर्म-पुत्र लड़ रहा।
नीति राजनीति की अनीति से सनी हुई,
लोकतन्त्र का कुतन्त्र, धर्मतन्त्र मर रहा।
शक्ति शून्य सा दिखे विराज, देश क्या बचे!
खण्ड-खण्ड हो गया समाज, देश क्या बचे!
- राजेश मिश्र
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