हे गिरिधारी! कृष्णमुरारी!
हे माखन के चोर! लाज राखो प्रभु मोर।
श्याम गात पीताम्बर धारी।
वाम अङ्ग वृषभानु दुलारी ।।
वर वैजन्ती माल वक्ष पर।
पंकज लोचन वेणु अधर धर।।
छवि अति न्यारी, जन मन हारी,
कान्ति काम की थोर, लाज राखो प्रभु मोर।
तुम भक्तों के प्राण अधारे।
तुमको भक्त प्राण से प्यारे।।
कष्ट जनों का देख न पाते।
सरबस छोड़ दौड़ कर आते।।
विनय हमारी, हे बनवारी!
देखो मेरी ओर, लाज राखो प्रभु मोर।
- राजेश मिश्र
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