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सुदामा की व्यथा

सँकुचत सुदामा चललँ, मनवाँ में भार बा।
कइसे कहब कान्हा से, हालि का हमार बा।।

कँखियाँ दबवले बाटँ, तनि एक चाउर।
रहि-रहि कूढ़त बाटँ, लागत ह बाउर।
पउँवाँ उठावँ जइसे, बड़का पहाड़ बा।।
कइसे कहब कान्हा से, हालि का हमार बा।।

बचपन क बतिया अब्बो, जियरा दुखारी।
छोटहन क गठरी अब त, भइल होइ भारी। 
कइसे भरब ऊ जवन, पहिला उधार बा।।
कइसे कहब कान्हा से, हालि का हमार बा।।

देखत सुदामा कान्हा, मिललँ हहाई।
करजा उतरलँ सारा, दुइ मूठ खाई।
छत्र तीनि लोक क ई, मितऊ तुहार बा।।
भरल भाव नैन चारो, बरसत अपार बा।।

- राजेश मिश्र

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