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जागो हिंदू, जागो!

जगो जगो उठो उठो
हुँकारते बढ़े चलो,
कराल शत्रु सामने
तृषार्त खड्ग खींच लो।

कराहती पुकारती 
दुखी निढाल भारती,
प्रतप्त शत्रु रक्त से
प्रदग्ध भूमि सींच दो।।

नहीं दया, नहीं क्षमा
निकृष्ट म्लेच्छ वंश को,
उदारता नहीं कोई 
दुराशयी फकीर को।

दुरारुढ़ी दुराग्रही 
कुदृष्टियुक्त लंपटी
नराधमी पिशाच को
बनो प्रचंड चीर दो।।

उठो सुपुत्र राम के,
उठो सुपुत्र कृष्ण के,
अभिन्न अंश रुद्र के,
सुसज्ज अस्त्र-शस्त्र हो।

पवित्र मातृभूमि की
मृदा मलो ललाट पर,
शिवा, प्रताप, पुष्य सा
प्रवीर हो, जयी बनो।।

© राजेश मिश्र 

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