झुण्ड-झुण्ड में छुपे भेड़िये, घात लगाये बैठे हैं।
धन-जीवन-सम्मान बचाने,
साथ-साथ चलना होगा…
यह अँधियारी रात सुबह की ओर बढ़ी जाती है।
साँझ छूटती पीछे, आगे भोर चली आती है।
किन्तु समय लम्बा लगना है, धैर्य बनाए रखना।
अपने पीछे छूट न जाएँ, हाथ बढ़ाए रखना।
सघन गहन है, पथ दुर्गम है,
पग-पग कर बढ़ना होगा।
साथ-साथ चलना होगा………(१)
पथ में होंगे वक्ष फुलाए गर्वीले भूधर भी।
मुँह बाए खाई भी होगी, अजगर-से गह्वर भी।
झंझानिल के क्रूर थपेड़े, होंगे उदधि उफनते।
फिर भी बढ़ते चलना है सबसे लड़ते, सब सहते।
शत्रु धूर्त है, विकट युद्ध है,
मिल-जुलकर लड़ना होगा।
साथ-साथ चलना होगा………(२)
यह अरि अधम, अनैतिक, अतिबल, क्षमा-दया नहिं जाने।
नीति न नियम, न कोई बन्धन, मर्यादा नहिं माने।
छल से, बल से, अस्त्र-शस्त्र से, जय जैसे भी आये।
खग जाने खग ही की भाषा, बाकी समझ न पाये।
धैर्य राम का, नीति कृष्ण की,
ढंग नया गढ़ना होगा।
साथ-साथ चलना होगा………(३)
- राजेश मिश्र
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें