इस शुष्क-तप्त जीवन में,
तुम सुखद वृष्टि बन आई।
सोंधी-सी सुरभि बिखेरा,
तन-मन ने ली अँगड़ाई।।
पाकर के साथ तुम्हारा,
नव-स्फूर्ति जगी इस मन में।
फिर फूल खिले आँगन में,
आनन्द भरा जन-जन में।
अद्भुत था, अद्भुत वह पल
जब माँ बन तुम मुसुकाई।
इस शुष्क-तप्त जीवन में,
तुम सुखद वृष्टि बन आई।।१।।
यह यात्रा नहीं सरल थी,
सम्बल था साथ तुम्हारा।
जो भी मैं बन-कर पाया,
है श्रेय तुम्हारा सारा।
हर बार बाँह थामा है,
जब-जब है ठोकर खाई।।
इस शुष्क-तप्त जीवन में,
तुम सुखद वृष्टि बन आई।।२।।
संघर्ष भरा यह जीवन,
मैं हृदय और तुम धड़कन।
जनमों का संग हमारा,
मन माँगे साथ विसर्जन।
तुम बिन यह जीवन मेरा,
होगा अतिशय दुखदाई।
इस शुष्क-तप्त जीवन में,
तुम सुखद वृष्टि बन आई।।३।।
- राजेश मिश्र
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