प्रिय! प्रीति तेरी मन बसी, तन छूट जाए या रहे।
हँसता प्रिये! तेरी हँसी, तन छूट जाए या रहे।
प्रिय प्रीति तेरी…………।।
क्या हुआ, यदि संग-संग न रह सके!
बात मन की बोलकर नहिं कह सके!
पर हृदय में तू सदा थी, तू रहेगी,
कौन दूजा, जो तपन यह सह सके?
उर मूर्ति तेरी ही सजी, तन छूट जाए या रहे।
प्रिय प्रीति तेरी मन बसी………।।१।।
अंग-अंग सुगन्ध ले तेरी फिरूँ मैं,
सुरभि कस्तूरी लिये मृग फिर रहा ज्यों।
प्रेम बिन तेरे अमा का चन्द्रमा मैं,
तमस में डूबा हुआ खो चन्द्रिका ज्यों।
तू मलय बन रग-रग रची, तन छूट जाए या रहे।
प्रिय प्रीति तेरी मन बसी………।।२।।
है असम्भव जन्म भर कुछ और चाहूँ,
तू प्रथम है, और अन्तिम चाह मेरी।
जन्म लेता ही रहूँगा चिर-मिलन तक,
इस जगत से मुक्ति की तू राह मेरी।
तेरे बिना कुछ भी नहीं, तन छूट जाए या रहे।
प्रिय प्रीति तेरी मन बसी………।।३।।
- राजेश मिश्र
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