काट फेंक दो जीवन-घाती तन के दूषित अङ्गों को।
आखिर कब तक सहते जायें कुलघाती जयचन्दों को?
जिस शरीर के अङ्ग, उसी को
नोंच-नोंच कर खाते हैं।
जिसकी कोख से जन्मे, उसके
टुकड़े करते जाते हैं।
इनसे मुक्ति दिलानी होगी स्वस्थ और नव अङ्गों को।
आखिर कब तक सहते जायें कुलघाती जयचन्दों को?……………(१)
सेक्युलरिज्मी चोला ओढ़े
हर कुकर्म ये करते हैं।
सत्य सनातन के विरोध में
नित नव गाथा गढ़ते हैं।
सावधान रह, निष्फल कर दो इनके सब हथकण्डों को।
आखिर कब तक सहते जायें कुलघाती जयचन्दों को?……………(२)
इनके कारण हिन्दू खण्डित
जाति-क्षेत्र में बँटा रहा।
उत्तर-दक्षिण, भाषा-भोजन,
इक-दूजे से कटा रहा।
इन्हें मिटाओ, साथ मिलाओ सारे टूटे खण्डों को।
आखिर कब तक सहते जायें कुलघाती जयचन्दों को?……………(३)
- राजेश मिश्र
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