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रो मत बेटी!

रो मत बेटी! शस्त्र उठा तू, 
दुर्धर दुर्गा रूप है।
कालरात्रि तू, वक्ष चीर दे,
तेरी शक्ति अनूप है।।

बहुत हुआ अब, बहुत सहा अब,
चुप रहना भी पाप है।
कर दे भस्म दरिन्दों को तू,
ज्वाला है, तू ताप है।

चेन्नम्मा, लक्ष्मी, झलकारी,
रत्ना, चम्पा रूप है।।
कालरात्रि तू, वक्ष चीर दे,
तेरी शक्ति अनूप है।।

कलि-कलुषित इन हैवानों को,
क्यों जीवन अधिकार हो?
हृदय क्रोध धर, शिरोच्छेद कर,
हलका भू का भार हो।

अबला कब थी? रुद्र-शक्ति तू,
चण्डी का पतिरूप है।
कालरात्रि तू, वक्ष चीर दे,
तेरी शक्ति अनूप है।।

- राजेश मिश्र

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