आज सुबह जैसे ही फेसबुक खोला, एक महिला का मित्रता अनुरोध दिखा। प्रोफाइल लॉक थी, फोटो थोड़ा छोटा था और आँखें कुछ कमजोर होने के कारण चेहरा साफ नहीं दिख रहा था। फिर भी इतना अंदाज तो लग ही गया कि कोई उम्रदराज महिला हैं, न कि शिकारी फेसबुक बाला। अतः मित्रता अनुरोध स्वीकार कर लिया।
फोटो को बड़ा करके देखा तो उजड़े बालों वाली, लटके गालों वाली, शुष्क-वक्षा, लंबोदरी देवीजी कुछ जानी-पहचानी सी लगीं। बहुत देर तक सोचता रहा, परन्तु याद नहीं आया कि कहाँ देखा है। अतः दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गया। किंतु देवीजी ने पीछा नहीं छोड़ा। उनका चेहरा रह-रहकर विचारों के द्वार पर थपकी देता रहा और मुझसे पूछता रहा—"पहचान कौन?"
छुट्टी का दिन था, अतः थोड़ी देर बाद फिर मोबाइल लेकर बैठ गया। फोटो को एक बार फिर बड़ा करके देखा और अचानक एक घटना मस्तिष्क में कौंध गई।
कल की ही बात थी। एक मित्र के यहाँ जुटान थी। एक 'कबी' जी भी आए थे। भाई लोग जुटे थे तो पकौड़ी-चाय के साथ हँसी-ठिठोली भी हो रही थी और ठहाके भी गूँज रहे थे। लेकिन 'कबी' जी अनमने-से, दु:ख की चादर ओढ़े, एक कोने में अछूत से बैठे थे, जैसे कोरोना के संभावित मरीज हों। पकौड़ी और चाय को भी उन्होंने मना कर दिया था। उनकी यह दशा मुझे खटकने लगी। जब रहा नहीं गया तो मैं उनका स्वास्थ्य परीक्षण करने उनके पास पहुँच गया।
मैंने पूछा—"कैसे हैं भाई साहब? मुँह कुछ उतरा-उतरा दिख रहा है। स्वास्थ्य तो ठीक है न?"
उन्होंने कहा—"अरे! नहीं, स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है।"
मैं: "घर पर कोई समस्या है क्या? भाभी-बच्चे सब लोग ठीक-ठाक हैं न?"
'कबी' जी: "हाँ-हाँ, सब लोग ठीक-ठाक हैं। कोई समस्या नहीं है।"
मैं: "तो फिर आप इतना लम्बा सा मुँह लटकाए क्यों बैठे हैं?"
'कबी' जी ने वहाँ बैठे समाज की तरफ दृष्टि डालते हुए कहा—"छोड़िए जाने दीजिए, यहाँ इस विषय पर बात करना ठीक नहीं होगा।"
उनके मंतव्य को समझते हुए मैंने कहा—"चिंता मत कीजिए। हमारी बातचीत की ओर किसी का ध्यान नहीं है। बताइए क्या बात है?"
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद 'कबी' जी ने कहा—"अरे यार! क्या बताएँ। आजकल पोस्ट पर लाइक-कमेंट आना बहुत कम हो गए हैं। कितना भी अच्छा लिखो, दोहरे अंकों तक भी नहीं पहुँचते हैं।"
बात तो सही थी। उनकी पीड़ा का कुछ-कुछ अनुभव तो मुझे हुआ, लेकिन मैं उसे पूरी तरह नहीं समझ सकता था क्योंकि मेरे लाइक-कमेंट दोहरे अंकों में पहुँचते हैं। मेरे प्रिय चिरंजीवी अनुज राकेश मिश्र 'सरयूपारीण' तो तिहरे अंको का आनंद ले रहे हैं। फिर भी उनके दर्द को साझा करते हुए मैंने बात आगे बढ़ाई और कहा—
"कृपा कहीं अटकी हुई है। कुछ दिन का अवकाश ले लीजिए, चिंतन-मनन कीजिए और नए कलेवर में नया विषय लेकर आइए। खोया यश अवश्य प्राप्त होगा।"
मेरा सुझाव उन्हें रास नहीं आया। 'वृद्धिरेचि' की भाँति उनकी अधीरता बढ़ गई और बोले—"अवकाश ले लूँ? आप जानते हैं न कि एक बार पोस्ट करना बंद कर दिया तो जो भी रहे-सहे प्रशंसक हैं, वे भी नहीं बचेंगे। अच्छा मजाक कर लेते हैं आप।"
मैंने कहा—"तो फिर अलग-अलग ग्रुप में पोस्ट कीजिए। हो सकता है कुछ प्रशंसक बढ़ जाएँ।"
वह बोले—"वह भी करके देख लिया, कोई लाभ नहीं।"
मैंने कहा—"जो आपके पुराने प्रशंसक रहे हैं, उनको टैग करके देखिए।"
उन्होंने कहा—"कोशिश की थी। कुछ दिन तक तो सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली थी। फिर उन्होंने उपेक्षा करना प्रारंभ कर दिया।"
मैंने कहा—"वैसे आपकी मित्रता सूची 5000 की ऊपरी सीमा तक पहुँच गई है। क्यों न उन लोगों को अपने मित्रता सूची से हटा दीजिए जो प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, और नए लोगों को आने दीजिए। इससे संभवत: कुछ लाभ हो।"
उन्होंने कहा—"वह भी करके देख लिया। कुछ नहीं हुआ।"
जैसे-जैसे बातचीत आगे बढ़ती जा रही थी, वह और भी अधीर होते जा रहे थे। धैर्य तो मेरा भी टूटने लगा था। अतः थोड़ा सा तंज कसते हुए मैंने कहा—"फिर तो मुझे इस जीवन में कोई उपाय नहीं सूझ रहा। अब प्रभु से प्रार्थना करिए कि अगले जन्म में आपको महिला बनाएँ, क्योंकि वे यदि अपना फोटो डालकर केवल इतना भी लिख देती हैं कि "कैसी लग रही हूँ", तो भी चार अंको का लाइक-कमेंट एंजॉय करती हैं।" और कहने के बाद थोड़ा सा मुस्कुरा दिया।
वह कुछ देर मेरी ओर टकटकी लगाए देखते रहे, फिर बिना कुछ कहे झटके से उठे और चल दिए। मित्रों में से कुछ मुझसे अप्रसन्न हो गए, तो कुछ ने सांत्वना देते हुए कहा—"कोई बात नहीं भाई! सब ठीक हो जाएगा।" शाम को मैं भारी मन से घर वापस आया और मन-ही-मन उनसे कई बार क्षमा भी माँगी।
लेकिन मुझे क्या पता था कि उनका पुनर्जन्म इतनी जल्दी हो जाएगा, और वह भी उसी शरीर और उसी प्रौढ़वस्था के साथ। 24 घंटे के भीतर हुए उनके इस पुनर्जन्म से मैं हत्प्रभ था और अब भी हूँ।
- राजेश मिश्र
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