देखो, बस मुझको मत देखो,
खुद को भी देखो मुझमें ही।
इसी देह में मैं भी रहता,
इसी देह में रहती तुम भी।।
तुमसे पहले एकाकी था
सब सूना-सूना लगता था।
भरी सभा हो, भरा मंच हो
पर ऊना-ऊना लगता था।
एकाकीपन गया तुम्हीं से
तुमसे पूरा खालीपन भी।
इसी देह में मैं भी रहता,
इसी देह में रहती तुम भी।।१।।
सुंदर सुष्ठु सुडौल देह यह
सप्त-धातु से परिपूरित थी।
हृष्ट-पुष्ट तन दृष्टि सभी की
अंदर क्या है, कब परिचित थी?
तुमको पा चंचल मन नाचे
मधुर-मधुर गाए धड़कन भी।
इसी देह में मैं भी रहता,
इसी देह में रहती तुम भी।।२।।
ये तन केवल साधन ही थे
आज मिले, कल फिर बिछड़ेंगे।
जनम-जनम का साथ हमारा
कोई तन ले आन मिलेंगे।
भाव हमारे यही रहेंगे
और यही होंगे चेतन भी।
इसी देह में मैं भी रहता,
इसी देह में रहती तुम भी।।३।।
ऊना = अपूर्ण, अधूरा।
- राजेश मिश्र
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