मौन कितनी ही वफाएँ अनकही ही रह गईं।
फलित होकर भी दुआएँ अनकही ही रह गईं।
तूलिका अरु कैनवस मेरे लिए हासिल न था,
अतः मेरी कल्पनाएँ अनकही ही रह गईं।
कहूँ तुमसे मैं कभी साहस जुटा पाया नहीं,
मनस् पलती कामनाएँ अनकही ही रह गईं।
हम सुरा में, सुंदरी में रम गए कुछ इस तरह,
साधकों की साधनाएँ अनकही ही रह गईं।
तर्क का, कुविचार का व्यभिचार अद्भुत देखकर,
स्वस्थ उनकी धारणाएँ अनकही ही रह गईं।
आज जन-दरबार का फिर था हमें न्यौता मिला,
पर हमारी समस्याएँ अनकही ही रह गईं।
सहिष्णुता व अहिंसा के व्यूह में हम यूँ फँसे,
कुछ हमारी आस्थाएँ अनकही ही रह गईं।
भूख से संघर्ष करते रह गए हम उम्र भर,
हृदय की मृदु भावनाएँ अनकही ही रह गईं।
जब कभी लिखने चले यादों में ऐसे खो गए,
तुम्हारी कमसिन अदाएँ अनकही ही रह गईं।
सोचते थे तुम कहीं रुसवा न हो जाओ प्रिये,
जिंदगी की कुछ कथाएँ अनकही ही रह गईं।
- राजेश मिश्र
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें