मोहन! मुरली मधुर बजाना।
मन प्यासा है, अभिलाषा है,
मीठी तान सुनाना।
मोहन! मुरली मधुर बजाना।।
जिस मुरली-धुन राधा रीझी
गोपिन सुध-बुध खोईं।
धेनु स्रवैं पय बिनु बछड़ा के
तान सुनाओ सोई।
श्रवण हमारे, विकल मुरारे!
इनका क्लेश नसाना।
मोहन! मुरली मधुर बजाना।।
नष्ट अधर्म हुआ जिस धुन से
धर्म-ध्वजा फहराई।
भरी सभा में कौतुक करके
अनुजा-लाज बचाई।
हे अविनाशी! पाप-विनाशी
छेड़ो वही तराना।
मोहन! मुरली मधुर बजाना।।
जिस धुन उपजी पावन गीता
अर्जुन मोह मिटाया।
पढ़त-सुनत जन-मन दुखभंजक
मुक्ति-मार्ग बतलाया।
हे यदुनंदन! असुरनिकंदन!
नेह-मेह बरसाना।
मोहन! मुरली मधुर बजाना।।
- राजेश मिश्र
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