जग की सारी खुशियाँ पा ली
तुम जो मेरे मीत बने।
मानो, मत मानो पर तुम ही
मेरी पहली प्रीत बने।।
प्रथम मिलन पर आंखें अपनी
ज्यों ही दो से घार हुईं।
मन-वीणा के तारों में मृदु
मद्धिम सी झनकार हुई।।
स्वर, लय, ताल उठे हो चेतन
और नए संगीत बने।
मानो, मत मानो पर तुम ही
मेरी पहली प्रीत बने।।१।।
धीरे-धीरे मौन नैन का
मुखरित वाणी तक आया।
मधुर-मधुर शब्दों में ढलकर
कानों से जा टकराया।
छंदों की गोदी जा बैठा
अरु जीवन के गीत बने।
मानो, मत मानो पर तुम ही
मेरी पहली प्रीत बने।।२।।
पाना और गँवाना, जग में
यही सदा व्यापार रहा।
सुखद मिलन, दुखप्रद बिछुड़न ही
प्रेम-नदी आधार रहा।
हो संयोग-वियोग सभी में
त्याग प्रेम की रीत बने।
मानो, मत मानो पर तुम ही
मेरी पहली प्रीत बने।।३।।
- राजेश मिश्र
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