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योगसूत्र समाधिपाद

(१)
अथ योगानुशासनम्।।१।।

सूत्रार्थ:-
अब योगशास्त्र का आरंभ करते हैं।

शब्दार्थ:-
अथ - अब। आरंभवाचक और मंगलवाचक।

योगानुशासनम् = योगस्य अनुशासनम् = योग का अनुशासन।

योग - जुड़ना, संयम, समाधि। 

अनुशासन - शास्त्र। जिसके द्वारा अनुशासित किया जाए, शिक्षा दी जाए।

(२)
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।।२।।

सूत्रार्थ:-
चित्र की वृत्तियों का रोकना योग है।

शब्दार्थ:-
योग: - योग।

चित्तवृत्तिनिरोध: = चित्तस्य (चित्त की) वृत्तय: (वृत्तियां) चित्तवृत्तय:, तासां (उनका) निरोध: (रोकना) चित्तवृत्तिनिरोध::।

चित्त - योगशास्त्र में अंत:करणसामान्य को ही चित्त कहा गया है। वेदांतशास्त्र में अंत:करण चार बताए गए हैं - मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। संख्यशास्त्र में भी मन, बुद्धि और अहंकार के भेद से अंतःकरण तीन बताए गए हैं। योगशास्त्र में इन तीनों भेदों को स्वीकार किया गया है। चित्त को इन तीनों के वाचक के रूप में लिया गया है। 

वृत्ति - चित्त जिस-जिस स्थिति में रहता है, वे स्थितियां चित्त की वृत्तियां हैं। 

निरोध - रोकना, निग्रह करना।

(३)
तदा द्रष्टु: स्वरूपेऽवस्थानम्।।३।।

सूत्रार्थ:-
उस समय द्रष्टा की अपने स्वरूप में स्थिति होती है।

शब्दार्थ:-
तदा - तब, उस समय।

द्रष्टु: - द्रष्टा की। आत्मा, पुरुष, चेतन, दृक्शक्ति, चितिशक्ति और द्रष्टा एकार्थक शब्द हैं। 

स्वरूपेऽवस्थानम् = स्वरूपे (स्वरूप में) अवस्थानम् (स्थिति)

(४)
वृत्तिसारूप्यमितरत्र।।४।।

सूत्रार्थ:-
अन्य अवस्था अर्थात् निरोधावस्था से भिन्न व्युत्थान अवस्था में द्रष्टा की वृत्तियों के समान रुपता होती है अर्थात् द्रष्टा वृत्तियों के समान रूप वाला प्रतीत होता है।

शब्दार्थ:-
वृत्तिसारूप्यम् = वृत्तिभि: (वृत्तियों से) सारूप्यम् (समानरूपता)।

इतरत्र - अन्यथा, उससे भिन्न (अवस्था में)

**ध्यातव्य है कि दूसरे सूत्र में चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था को योग बताया है जिसमें द्रष्टा अपने स्वरूप में स्थित होता है। यहां कह रहे हैं कि जब चित्त  की अवस्था निरोधावस्था से भिन्न होती है, तो द्रष्टा अपने आप को चित्त की वृत्तियों के सदृश समझने लगता है।

(५)
वृत्तय: पञ्चतय्य: क्लिष्टाक्लिष्टा:।।५।।

सूत्रार्थ:-
क्लिष्ट और अक्लिष्ट वृत्तियाँ पाँच प्रकार की होती हैं। 

शब्दार्थ:-
वृत्तय: - वृत्तियाँ।
पञ्चतय्य: - पाँच प्रकार की।
क्लिष्टाक्लिष्टा: = क्लिष्टा: (क्लिष्ट) अक्लिष्टा: (अक्लिष्ट)

**अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश - ये पाँच क्लेश होते हैं। इन क्लेशों को बढ़ाने वाली वृत्तियाँ क्लिष्ट होती हैं और इनका नाश करने वाली अक्लिष्ट।

(६)
प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतय:।।६।।

सूत्रार्थ:-
प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति - ये पाँच प्रकार की वृत्तियाँ हैं। 

(७)
प्रत्यक्षानुमानागमा: प्रमाणानि।।७।।

सूत्रार्थ:-
प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम - ये तीन प्रमाण वृत्तियाँ हैं। 

शब्दार्थ:-
प्रमाण = प्रमा (यथार्थ ज्ञान) करण (साधन)  अर्थात् यथार्थ ज्ञान का साधन।

प्रत्यक्ष = प्रति (सामने) अक्ष (आँख) अर्थात इन्द्रियग्राह्य, सीधे इन्द्रियों द्वारा अनुभूत विशेष ज्ञान। यहाँ अक्ष शब्द सारी इद्रियों का द्योतक है। 

अनुमान = पूर्व में प्रत्यक्ष की हुई अप्रत्यक्ष वस्तु का उसके प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर ज्ञान।

आगम = वेद, शास्त्र तथा आप्त पुरुषों के के वचन। 

**आप्त पुरुष का अर्थ है - जिसे प्रतिपाद्यमान विषय का प्रत्यक्ष या अनुमित यथार्थ ज्ञान हो और वह यथार्थ वक्ता हो।

(८)
विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम्।।८।।

सूत्रार्थ:-
ज्ञेय वस्तु से भिन्न रूप में प्रतिष्ठित
 मिथ्याज्ञान विपर्यय होता है। 

शब्दार्थ:-
विपर्ययो = विपर्यय: = विपर्यय

मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् = मिथ्याज्ञानम् अतद्रूपप्रतिष्ठम्

मिथ्याज्ञानम् = भ्रान्तज्ञान

अतद्रूपप्रतिष्ठम्  = भिन्न रूप में प्रतिष्ठित।
तस्य रूपम् इति तद्रूपमृ
न तद्रूपमृ इति अतद्रूपम्
अतद्रूपे प्रतिष्ठा यस्य ज्ञानस्य तज्ज्ञानम् अतद्रूपप्रतिष्ठम्।

(९)
शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्प:।।९।।

सूत्रार्थ:-
शब्द से उत्पन्न ज्ञान की अनुगामिनी वस्तु से शून्य वृत्ति विकल्प है। 

शब्दार्थ:-
शब्दज्ञानानुपाती = शब्द से उत्पन्न ज्ञान के पीछे चलने वाली।

वस्तुशून्यो = वास्तुशून्य: = निर्वस्तुक, वस्तु की सत्ता की अपेक्षा न रखने वाली।

विकल्प: = विकल्प।

(१०)
अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिर्निद्रा।।१०।।

सूत्रार्थ:-
(जाग्रत और स्वप्नवस्था की वृत्तियों के)
अभाव की प्रतीति को आश्रय करने वाली वृत्ति निद्रा है। 

शब्दार्थ:-
अभावप्रत्ययालम्बना = अभाव-प्रत्यय-आलम्बना (अभावस्य प्रत्यय: आलम्बनं यस्या:)

अभाव = आविद्यमानता, अनस्तित्व 

प्रत्यय = ज्ञान, प्रतीति, अनुभव, कारण

आलम्बना = आश्रय बनाने या लेने वाली 

वृत्तिर्निद्रा = वृत्ति: (वृत्ति) निद्रा (निद्रा)

(११)
अनुभूतविषयासम्प्रमोष: स्मृति:।।११।।

सूत्रार्थ:-
अनुभव किए हुए विषय का लुप्त न होना
 अर्थात् चित्त में बने रहना और अभिव्यञ्जक (बोधक, प्रकट करने वाला) की उपस्थिति में 
पुनः प्रकट हो जाना स्मृति है।

शब्दार्थ:-
अनुभूतविषयासम्प्रमोष = अनुभूत: विषय: अनुभूतविषय: तस्य असम्प्रमोष:।

अनुभूत = अनुभव किया हुआ।

विषय = ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ग्रहण किए जाने वाला पदर्थ।

असम्प्रमोष = चोरी न होना, विनष्ट न होना।

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