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क्यों आती सपनों में मेरे?

जब दिल मेरा तोड़ दिया है

मुझे तड़पता छोड़ दिया है 

शपथ-वचन वे सभी भुलाकर 

चली गई जब मुझे रुलाकर

क्यों आती सपनों में मेरे…?


पल भर को भी सोचा होता 

मन को अपने टोका होता 

पग जब उठे दूर जाने को 

कोई और अंक पाने को 

ठिठकी होती, सँभली होती

दुनिया अपनी बदली होती 

पर तुमने तो दृष्टि घुमा ली 

तब, जब मुझसे आँख चुरा ली 

क्यों आती सपनों में मेरे…?……(१)


मैं तो मगन-मगन रहता था 

ताप-शीत हँस-हंँस सहता था 

तुमसे ही सारी दुनिया थी 

तुम मेरी प्यारी दुनिया थी 

भोर तुम्हारी उठती पलकें

हंसीं शाम थीं झुकती पलकें

रात रँगीली, दिवस निराला 

तुमने तहस-नहस कर डाला 

क्यों आती सपनों में मेरे…?……(२)


चलो मान लें अगर विवश थी

स्ववश नहीं थी, तुम परवश थी

एक नजर तो डाली होती

पलकें जरा उठा ली होती

वाणी यदि चुप रह सकती थी

आँखें तो सब कह सकती थीं 

लेकिन मुझसे नजर बचाकर

चली गई मुख अगर फिराकर 

क्यों आती सपनों में मेरे…?……(३)


- राजेश मिश्र

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