क्षिप्तं, मूढं, विक्षिप्तमेकाग्रं, निरुद्धमिति चित्तभूमय:। क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त, एकाग्र और निररुद्ध - चित्त की ये पाँच भूमियाँ होती हैं। सारी सृष्टि सत्त्व, राजस् और तमस् - इन तीन गुणों का ही परिणाम है। एक धर्म, आकार अथवा रूप को छोड़कर दूसरे धर्म, आकार अथवा रूप के धारण करने को परिणाम कहते हैं। चित्त इन गुणों का सर्वप्रथम सत्त्वप्रधान परिणाम है। इसीलिए इसको चित्तसत्त्व भी कहते हैं। यह सारा स्थूल जगत जिसमें हमारा व्यवहार चल रहा है, रज तथा तमप्रधान गुणो का परिणाम है। इसके बाह्य तथा अभ्यंतर संसर्ग से जो चित्तसत्त्व में क्षण-क्षण गुणों का परिणाम हो रहा है, उसकी चित्तवृत्ति कहते हैं। चित्तसत्त्व ज्ञान स्वभाव वाला है। जब उसमें रजोगुण और तमोगुण का मेल होता है तब ऐश्वर्य, विषय प्रिय होते हैं। जब यह तमोगुण से युक्त होता है, तब अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य और अनैश्वर्य को प्राप्त होता है। यही चित्त जब तमोगुण के नष्ट होने पर रजोगुण के अंश से युक्त होता है, तब धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्या को प्राप्त होता है। घोड़े की साम्यता ही चित्त की भूमियों या अवस्थाओं का आधार है। १. क्षिप्त ...